जमशेदपुर, 20 अप्रैल (आईएएनएस)। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता चंपई सोरेन ने आदिवासियों के धर्मांतरण के खिलाफ आंदोलन का ऐलान किया है।
पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया में रविवार को आयोजित आदिवासी महासम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पूरे प्रदेश में प्रकृति पूजक आदिवासी समाज को खत्म करने का षड्यंत्र चल रहा है। उन्होंने धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण के दायरे से बाहर करने की मांग करते हुए कहा कि जिन लोगों ने आदिवासी समाज की पूजा पद्धति, परंपराओं और आस्थाओं का त्याग कर दिया है, वे आदिवासी के नाम पर संविधान प्रदत्त अधिकार कैसे ले सकते हैं?
“भारत जाकात माझी परगना महाल” और “आदिवासी सावंता सुसार अखाड़ा” नामक संगठनों की ओर से आयोजित महासम्मेलन में कोल्हान प्रमंडल के विभिन्न हिस्सों से आए आदिवासियों ने भाग लिया। चंपई सोरेन ने आदिवासियों का आह्वान किया कि वे अपनी परंपराओं और आस्थाओं पर हो रहे हमले के खिलाफ सतर्क हो जाएं और अपने अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई के लिए जनजागरण अभियान में साथ आएं।
उन्होंने कहा कि जामताड़ा से उन्होंने जनजागरण अभियान की शुरुआत की है, जो अगले चार-पांच महीने तक जारी रहेगा। उनका संकल्प है कि संथाल परगना के 10 लाख से ज्यादा आदिवासियों की सभा कर अपनी आवाज दिल्ली तक पहुंचाएंगे।
सोरेन ने कहा कि अगर धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो भविष्य में आदिवासियों के जाहेरथानों, देशाउली एवं सरना स्थलों (धार्मिक स्थलों) पर पूजा करने कौन जाएगा? ऐसे तो हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। आदिवासी संस्कृति का मतलब सिर्फ पूजा पद्धति नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवनशैली है। जन्म से लेकर शादी-विवाह एवं मृत्यु तक, हमारे समाज की सभी प्रक्रियाओं को मांझी परगना, पाहन, मानकी मुंडा, पड़हा राजा आदि पूरा करवाते हैं। जिन लोगों ने धर्मांतरण के बाद ईसाई धर्म अपना लिया है, वे लोग सभी प्रक्रियाओं के लिए चर्च में जाते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि वहां हमारे देवता “मरांग बुरु” या “सिंग बोंगा” की पूजा होती है क्या?
भाजपा नेता ने गैर-आदिवासी पुरुषों से शादी करने वाली आदिवासी महिलाओं को भी आरक्षण से बाहर करने की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि अगर हम अभी सतर्क नहीं होंगे तो देशाउली, सरना स्थल, जाहेरथान जाने के लिए एक भी आदिवासी व्यक्ति नहीं मिलेगा।
उन्होंने कहा कि संथाल परगना सहित राज्य के सभी क्षेत्रों में आदिवासियों की जनसंख्या घटने के आंकड़े सामने आ रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण हम अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं।
--आईएएनएस
एसएनसी/एकेजे
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