नई दिल्ली: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर की टीम का वर्ल्ड कप ट्रॉफी तक का सफर सिर्फ एक खेल की कहानी नहीं है, बल्कि दशकों के संघर्ष, दृढ़ संकल्प और जुनून की कहानी है। एक ऐसा दौर भी था जब खिलाड़ियों को बिना टॉयलेट वाले हॉस्टल में रहना पड़ता था, सफर के लिए अपनी जेब से पैसे जुटाने पड़ते थे और एक ही क्रिकेट बैट भी शेयर करना पड़ता था। आज जब टीम इंडिया वर्ल्ड कप जीत चुकी है, तो उस दौर को भी याद करना जरूरी है, जिसने इस वर्ल्ड कप के लिए नीव रखा था।   
   
किट शेयर करने से लेकर प्रोफेशनल खेल बनाने तक का सफर
महिला क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WCAI) की पूर्व सचिव और महिला क्रिकेट आंदोलन की प्रमुख हस्ती नूतन गावस्कर ने पुराने दिनों के संघर्ष को याद किया। उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, 'पैसा नहीं था, कोई स्पॉन्सर नहीं थे और विदेशी दौरे एक मुसीबत थे... हमें कहा जाता था कि महिला क्रिकेट एक प्रोफेशनल खेल नहीं है।' फंड की कमी इतनी ज्यादा थी कि इंटरनेशनल दौरों के लिए भी जुगाड़ करना पड़ता था। उन्होंने याद किया कि कैसे एक बार अभिनेत्री मंदिरा बेदी ने इंग्लैंड दौरे के लिए टीम के हवाई टिकट का खर्च उठाया था।
   
नूतन गावस्कर ने सामान की भारी कमी का भी जिक्र किया। उन्होंने हंसते हुए कहा कि 'एक टीम के पास सिर्फ तीन बैट होते थे। दो ओपनर के पास दो बैट होते थे, और नंबर 3 के पास तीसरा बैट होता था। जब कोई ओपनर आउट हो जाती थी, तो नंबर 4 खिलाड़ी उसका बैट और पैड ले लेती थी।'
   
जनरल डिब्बों की यात्रा और फर्श पर सोना
भारत की पहली महिला टेस्ट कप्तान शांता रंगस्वामी ने शुरुआती साल लचीलेपन और आत्म-विश्वास से भरे बताए। उन्होंने बताया कि डायना एडुल्जी और सुभांगी कुलकर्णी जैसी खिलाड़ियों के लिए मैच फीस एक अनजान बात थी। रंगस्वामी ने कहा, 'अनरिजर्वड कोचों में यात्रा करने से लेकर फर्श पर हॉस्टल में सोने तक, हमें अपना बिस्तर भी साथ ले जाना पड़ता था। हम अपने क्रिकेट किट को बैकपैक की तरह पीठ पर और एक सूटकेस हाथ में लेकर चलते थे।" 36 से 48 घंटे की लंबी ट्रेन यात्राएं अक्सर जनरल डिब्बों में होती थीं, जिसका किराया खिलाड़ी अपनी जेब से भरती थीं।
   
      
आज मिल रहा फल
शांता रंगस्वामी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि मौजूदा टीम की सफलता दशकों के दृढ़ संकल्प का नतीजा है। उन्होंने कहा, 'हमें बहुत खुशी है कि आज की खिलाड़ियों को सारी सुविधाएं मिल रही हैं। वे इसकी हकदार हैं। हमने जो नींव करीब 50 साल पहले रखी थी, वह अब फल दे रही है।' आज की भारतीय महिला टीम का वर्ल्ड कप फाइनल तक पहुंचना नूतन और रंगस्वामी जैसी दिग्गजों के पीढ़ियों से चले आ रहे एक सपने का पूरा होना है। यह दिखाता है कि कैसे दृढ़ संकल्प और जुनून से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।
  
किट शेयर करने से लेकर प्रोफेशनल खेल बनाने तक का सफर
महिला क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WCAI) की पूर्व सचिव और महिला क्रिकेट आंदोलन की प्रमुख हस्ती नूतन गावस्कर ने पुराने दिनों के संघर्ष को याद किया। उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, 'पैसा नहीं था, कोई स्पॉन्सर नहीं थे और विदेशी दौरे एक मुसीबत थे... हमें कहा जाता था कि महिला क्रिकेट एक प्रोफेशनल खेल नहीं है।' फंड की कमी इतनी ज्यादा थी कि इंटरनेशनल दौरों के लिए भी जुगाड़ करना पड़ता था। उन्होंने याद किया कि कैसे एक बार अभिनेत्री मंदिरा बेदी ने इंग्लैंड दौरे के लिए टीम के हवाई टिकट का खर्च उठाया था।
नूतन गावस्कर ने सामान की भारी कमी का भी जिक्र किया। उन्होंने हंसते हुए कहा कि 'एक टीम के पास सिर्फ तीन बैट होते थे। दो ओपनर के पास दो बैट होते थे, और नंबर 3 के पास तीसरा बैट होता था। जब कोई ओपनर आउट हो जाती थी, तो नंबर 4 खिलाड़ी उसका बैट और पैड ले लेती थी।'
जनरल डिब्बों की यात्रा और फर्श पर सोना
भारत की पहली महिला टेस्ट कप्तान शांता रंगस्वामी ने शुरुआती साल लचीलेपन और आत्म-विश्वास से भरे बताए। उन्होंने बताया कि डायना एडुल्जी और सुभांगी कुलकर्णी जैसी खिलाड़ियों के लिए मैच फीस एक अनजान बात थी। रंगस्वामी ने कहा, 'अनरिजर्वड कोचों में यात्रा करने से लेकर फर्श पर हॉस्टल में सोने तक, हमें अपना बिस्तर भी साथ ले जाना पड़ता था। हम अपने क्रिकेट किट को बैकपैक की तरह पीठ पर और एक सूटकेस हाथ में लेकर चलते थे।" 36 से 48 घंटे की लंबी ट्रेन यात्राएं अक्सर जनरल डिब्बों में होती थीं, जिसका किराया खिलाड़ी अपनी जेब से भरती थीं।
आज मिल रहा फल
शांता रंगस्वामी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि मौजूदा टीम की सफलता दशकों के दृढ़ संकल्प का नतीजा है। उन्होंने कहा, 'हमें बहुत खुशी है कि आज की खिलाड़ियों को सारी सुविधाएं मिल रही हैं। वे इसकी हकदार हैं। हमने जो नींव करीब 50 साल पहले रखी थी, वह अब फल दे रही है।' आज की भारतीय महिला टीम का वर्ल्ड कप फाइनल तक पहुंचना नूतन और रंगस्वामी जैसी दिग्गजों के पीढ़ियों से चले आ रहे एक सपने का पूरा होना है। यह दिखाता है कि कैसे दृढ़ संकल्प और जुनून से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।
You may also like

भारत ने बैठे-बिठाए कर दिया बड़ा खेल...POK पर पाकिस्तान का गेम ओवर, अफगानिस्तान-बलूचिस्तान में रक्षा डील! जानिए-हकीकत

'मस्ती 4' का ट्रेलर: पुराने डबल मीनिंग जोक्स लेकर लौटे विवेक-आफताब और रितेश, तुषार कपूर को देखकर छूटेगी हंसी

Astrology: 30 साल बाद शुक्र और शनि की बदल रही चाल, इन 3 राशियों की बदलेगी किस्मत, बरसेगा पैसा

अयोध्या में 25 नवंबर को आएंगे पीएम मोदी और आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत: गोपाल राय

Jokes: हरियाणे की लुगाइयों न अंगेजी सिखाण खात्तर टीचर आईं, इब A फॉर एप्पल B फॉर बॉय तो समझाना आसान नहीं था, पढ़ें आगे




