इस्लामाबाद: पाकिस्तान की नौसेना अगले साल चीन से खरीदी गई पनडुब्बी को अपने बेड़े में शामिल कर सकती है। पाकिस्तानी नौसेना को उम्मीद है कि उसकी पहली चीनी डिजाइन वाली पनडुब्बी अगले साल सक्रिय सेवा में आ जाएगी। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के शीर्ष एडमिरल ने चीनी सरकारी मीडिया को ऐसा बताया है। पाकिस्तानी नौसेना में पनडुब्बी के शामिल होने से अरने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी भारत का मुकाबला करने और मध्य पूर्व की ओर अपनी शक्ति प्रदर्शित करने की चीन की क्षमता में और इजाफा होगा।
पाकिस्तान नौसेना के एडमिरल नवीद अशरफ ने रविवार को ग्लोबल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बताया है कि चीन, साल 2028 तक पाकिस्तान को आठ हैंगर-क्लास की पनडुब्बियां सौंप देगा, जिसके लिए काम चल रहा है। उन्होंने आगे कहा कि ये पनडुब्बियां उत्तरी अरब सागर और हिंद महासागर में गश्त करने की पाकिस्तान की क्षमता को बढ़ाएंगी।
पाकिस्तानी नौसेना में अगले साल चीनी पनडुब्बी!
आपको बता दें कि पाकिस्तान अब अपने करीब 80 प्रतिशत से ज्यादा हथियार चीन से खरीद रहा है। पाकिस्तान ने चीन से J-10C लड़ाकू विमान खरीदा है, जिसका इस्तेमाल उसने भारत के खिलाफ किया था। इसके अलावा चीन ने मई महीने में भारत के खिलाफ संघर्ष शुरू होने से पहले पाकिस्तान को PL-15 मिसाइलें भी दी थीं। हालांकि, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के चीनी मूल के ज्यादा हथियार, जैसे रडार, मिसाइल डिफेंस सिस्टम और ड्रोन बुरी तरह से नाकाम रहे थे, फिर भी पाकिस्तान, लगातार चीन से हथियारों की खरीद जारी रखे हुए है। पाकिस्तान ने चीन के साथ 5 अरब डॉलर का पनडुब्बी समझौता किया था, जिसके तहत पहली चार डीजल-इलेक्ट्रिक हमलावर पनडुब्बियों का निर्माण चीन में हो रहा है। इसके अलावा बाकी पनडुब्बियों को पाकिस्तान में असेंबल किया जाएगा।
पाकिस्तान पहले ही हुबेई प्रांत के मध्य में स्थित एक शिपयार्ड से चीन की यांग्त्जी नदी में तीन पनडुब्बियां उतार चुका है। एडमिरल नवीद अशरफ ने ग्लोबल टाइम्स से कहा है कि चीनी हथियार पाकिस्तान के लिए विश्वसनीय और टेक्नोलॉजी के स्तर पर एडवांस साबित हो रहे हैं। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों से पता चलता है कि इस्लामाबाद लंबे समय से बीजिंग का सबसे बड़ा हथियार ग्राहक रहा है और 2020-2024 की अवधि में उसने चीन के 60% से ज्यादा हथियार चीन से खरीदे हैं।
अरब सागर में भारत के लिए बढ़ती चुनौती
चीन लगातार अरब सागर में पाकिस्तान को मजबूत बना रहा है। ग्वादर बंदरगाह पहले से ही चीन के पास है। बीजिंग ने चीन के शिनजियांग से पाकिस्तान के गहरे पानी वाले बंदरगाह ग्वादर तक फैले 3,000 किलोमीटर लंबे आर्थिक गलियारे के माध्यम से अरब सागर से अपने संपर्क स्थापित करने में भारी निवेश किया है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर, यानि CPEC, राट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख 'बेल्ट एंड रोड' का एक हिस्सा है, जिसका मकसद दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा आयातक के लिए मध्य पूर्व से आपूर्ति लाने के लिए एक मार्ग सुरक्षित करना है। चीन इसके जरिए मलक्का जलडमरूमध्य से निर्भरता हटाते हुए एक वैकल्पिक रास्ता बनामे में लगा है।
आपको बता दें कि मलक्का जलडमरूमध्य को चीन के लिए हिंद महासागर में घुसने का दरवाजा कहा जाता है, जो मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच एक रणनीतिक रास्ता है और भारत इसे कभी भी ब्लॉक कर चीन के सप्लाई चेन को ही तोड़ सकता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत फिलहाल तीन स्वदेशी रूप से विकसित परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के साथ-साथ फ्रांस, जर्मनी और रूस के साथ दशकों से अधिग्रहित या विकसित की गई तीन प्रकार की डीजल-इलेक्ट्रिक हमलावर पनडुब्बियों का संचालन करता है।
पाकिस्तान नौसेना के एडमिरल नवीद अशरफ ने रविवार को ग्लोबल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बताया है कि चीन, साल 2028 तक पाकिस्तान को आठ हैंगर-क्लास की पनडुब्बियां सौंप देगा, जिसके लिए काम चल रहा है। उन्होंने आगे कहा कि ये पनडुब्बियां उत्तरी अरब सागर और हिंद महासागर में गश्त करने की पाकिस्तान की क्षमता को बढ़ाएंगी।
पाकिस्तानी नौसेना में अगले साल चीनी पनडुब्बी!
आपको बता दें कि पाकिस्तान अब अपने करीब 80 प्रतिशत से ज्यादा हथियार चीन से खरीद रहा है। पाकिस्तान ने चीन से J-10C लड़ाकू विमान खरीदा है, जिसका इस्तेमाल उसने भारत के खिलाफ किया था। इसके अलावा चीन ने मई महीने में भारत के खिलाफ संघर्ष शुरू होने से पहले पाकिस्तान को PL-15 मिसाइलें भी दी थीं। हालांकि, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के चीनी मूल के ज्यादा हथियार, जैसे रडार, मिसाइल डिफेंस सिस्टम और ड्रोन बुरी तरह से नाकाम रहे थे, फिर भी पाकिस्तान, लगातार चीन से हथियारों की खरीद जारी रखे हुए है। पाकिस्तान ने चीन के साथ 5 अरब डॉलर का पनडुब्बी समझौता किया था, जिसके तहत पहली चार डीजल-इलेक्ट्रिक हमलावर पनडुब्बियों का निर्माण चीन में हो रहा है। इसके अलावा बाकी पनडुब्बियों को पाकिस्तान में असेंबल किया जाएगा।
पाकिस्तान पहले ही हुबेई प्रांत के मध्य में स्थित एक शिपयार्ड से चीन की यांग्त्जी नदी में तीन पनडुब्बियां उतार चुका है। एडमिरल नवीद अशरफ ने ग्लोबल टाइम्स से कहा है कि चीनी हथियार पाकिस्तान के लिए विश्वसनीय और टेक्नोलॉजी के स्तर पर एडवांस साबित हो रहे हैं। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों से पता चलता है कि इस्लामाबाद लंबे समय से बीजिंग का सबसे बड़ा हथियार ग्राहक रहा है और 2020-2024 की अवधि में उसने चीन के 60% से ज्यादा हथियार चीन से खरीदे हैं।
अरब सागर में भारत के लिए बढ़ती चुनौती
चीन लगातार अरब सागर में पाकिस्तान को मजबूत बना रहा है। ग्वादर बंदरगाह पहले से ही चीन के पास है। बीजिंग ने चीन के शिनजियांग से पाकिस्तान के गहरे पानी वाले बंदरगाह ग्वादर तक फैले 3,000 किलोमीटर लंबे आर्थिक गलियारे के माध्यम से अरब सागर से अपने संपर्क स्थापित करने में भारी निवेश किया है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर, यानि CPEC, राट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख 'बेल्ट एंड रोड' का एक हिस्सा है, जिसका मकसद दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा आयातक के लिए मध्य पूर्व से आपूर्ति लाने के लिए एक मार्ग सुरक्षित करना है। चीन इसके जरिए मलक्का जलडमरूमध्य से निर्भरता हटाते हुए एक वैकल्पिक रास्ता बनामे में लगा है।
आपको बता दें कि मलक्का जलडमरूमध्य को चीन के लिए हिंद महासागर में घुसने का दरवाजा कहा जाता है, जो मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच एक रणनीतिक रास्ता है और भारत इसे कभी भी ब्लॉक कर चीन के सप्लाई चेन को ही तोड़ सकता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत फिलहाल तीन स्वदेशी रूप से विकसित परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के साथ-साथ फ्रांस, जर्मनी और रूस के साथ दशकों से अधिग्रहित या विकसित की गई तीन प्रकार की डीजल-इलेक्ट्रिक हमलावर पनडुब्बियों का संचालन करता है।
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