नई दिल्ली: देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित लाल किले के पास हुए बम ब्लास्ट की जांच की जिम्मेदारी अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई है। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय बैठक बुलाई गई थी, जिसमें कई अधिकारी शामिल हुए थे। इस बैठक में ही फैसला किया गया कि दिल्ली के लाल किले के पास हुए ब्लास्ट की जिम्मेदारी अब एनआईए को सौंपी जाएगी, ताकि ब्लास्ट का वास्तविक कारण सामने आ सके।
लेकिन इन सब के बीच अब सवाल उठ रहा है कि आखिर मोदी सरकार के 11 साल में पहली बार आतंकी राजधानी दिल्ली को दहलाने में कामयाब कैसे हो गया? आखिर चूक कहां हो गई?
सोमवार को हुआ यह विस्फोट दिल्ली की शांति को भंग करने का पहला प्रयास कह सकते हैं। दिल्ली में आतंकवादी हमले की आखिरी घटना 13 साल से भी ज्यादा पहले, फरवरी 2012 में हुई थी, जब इजराइली दूतावास के पास एक बम विस्फोट हुआ था। इससे पहले, 2005-2011 की अवधि विशेष रूप से तनावपूर्ण रही थी, जब दिल्ली में कनॉट प्लेस और सरोजिनी नगर जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में कम से कम पांच आतंकवादी हमले हुए थे। लेकिन इस बार का हमला ऐसे इलाके में किया गया जहां पुलिस की भारी सिक्योरिटी चेकपोस्ट से होकर गुजरना पड़ता है।
आखिर कहां हो गई चूक?
अब इस धमाके के बाद सवाल उठ रहा है कि खुफिया अलर्ट के बावजूद चूक कहां हुई? अगर खुफिया जानकारी थी, तो दिल्ली के इतने संवेदनशील और भीड़-भाड़ वाले इलाके में कार भारी विस्फोटक के साथ कैसे पहुंच गया? क्या सिक्योरिटी चेक में जाने के बावजूद पुलिस नहीं पकड़ पाई। क्या आतंकी ने शातिर तरीके से विस्फोटकों को छिपाकर रखा था ताकि मेटल डिटेक्टर से डिटेक्ट नहीं हो सके। दिल्ली पुलिस से कहीं न कहीं तो चूक हुई जिससे कि 13 साल बाद आतंकी ने दिल्ली में हमला करने का मौका खोज ही लिया।
क्या दिल्ली में ही हुई प्लानिंग
शक इस बात पर भी जा रहा है कि कहीं कार को दिल्ली में लाकर उसमें विस्फोटक तो नहीं भरा गया। फिर शातिक तरीके से पुलिस को चकमा देकर लाल किला के इलाके में घुस गया हो। विस्फोटक लेकर दूसरे राज्य से दिल्ली में एंट्री लेना आसान काम नहीं होगा। क्योंकि बॉर्डर पर पुलिस की जांच से गुजरना ही पड़ता।
कार का मालिकाना हक कई बार बदला गया
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, कार का मालिकाना हक कई बार बदला जा चुका है। इसे पहले नदीम को बेचा गया। इसके बाद फरीदाबाद के सेकेंड हेंड डीलर को। इसके बाद यह गाड़ी आमिर ने खरीदी, इसके बाद तारीक ने, जिस पर फरीदाबाद के आतंकी मॉड्यूल से जुड़े होने का संदेह है। इसके बाद मोहम्मद उमर ने इसे खरीद लिया था।
क्या यह आत्मघाती हमला नहीं था?
समाचार एजेंसी ANI को सूत्रों ने बताया कि यह आत्मघाती हमला नहीं था। संदिग्ध ने घबराहट में विस्फोट किया। बम पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ था, इसलिए इसका प्रभाव सीमित रहा। विस्फोट से कोई गड्ढा नहीं बना और न ही कोई छर्रे या प्रक्षेपास्त्र मिले। विस्फोट के समय वाहन गतिमान था और आईईडी भारी जनहानि करने के लिए सुसज्जित नहीं था। माना जा रहा है कि दिल्ली-NCR और पुलवामा में कई स्थानों पर सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की गई छापेमारी में भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद होने के कारण संदिग्ध ने बढ़ते दबाव के चलते जल्दबाजी में कदम उठाया।
लेकिन इन सब के बीच अब सवाल उठ रहा है कि आखिर मोदी सरकार के 11 साल में पहली बार आतंकी राजधानी दिल्ली को दहलाने में कामयाब कैसे हो गया? आखिर चूक कहां हो गई?
सोमवार को हुआ यह विस्फोट दिल्ली की शांति को भंग करने का पहला प्रयास कह सकते हैं। दिल्ली में आतंकवादी हमले की आखिरी घटना 13 साल से भी ज्यादा पहले, फरवरी 2012 में हुई थी, जब इजराइली दूतावास के पास एक बम विस्फोट हुआ था। इससे पहले, 2005-2011 की अवधि विशेष रूप से तनावपूर्ण रही थी, जब दिल्ली में कनॉट प्लेस और सरोजिनी नगर जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में कम से कम पांच आतंकवादी हमले हुए थे। लेकिन इस बार का हमला ऐसे इलाके में किया गया जहां पुलिस की भारी सिक्योरिटी चेकपोस्ट से होकर गुजरना पड़ता है।
आखिर कहां हो गई चूक?
अब इस धमाके के बाद सवाल उठ रहा है कि खुफिया अलर्ट के बावजूद चूक कहां हुई? अगर खुफिया जानकारी थी, तो दिल्ली के इतने संवेदनशील और भीड़-भाड़ वाले इलाके में कार भारी विस्फोटक के साथ कैसे पहुंच गया? क्या सिक्योरिटी चेक में जाने के बावजूद पुलिस नहीं पकड़ पाई। क्या आतंकी ने शातिर तरीके से विस्फोटकों को छिपाकर रखा था ताकि मेटल डिटेक्टर से डिटेक्ट नहीं हो सके। दिल्ली पुलिस से कहीं न कहीं तो चूक हुई जिससे कि 13 साल बाद आतंकी ने दिल्ली में हमला करने का मौका खोज ही लिया।
क्या दिल्ली में ही हुई प्लानिंग
शक इस बात पर भी जा रहा है कि कहीं कार को दिल्ली में लाकर उसमें विस्फोटक तो नहीं भरा गया। फिर शातिक तरीके से पुलिस को चकमा देकर लाल किला के इलाके में घुस गया हो। विस्फोटक लेकर दूसरे राज्य से दिल्ली में एंट्री लेना आसान काम नहीं होगा। क्योंकि बॉर्डर पर पुलिस की जांच से गुजरना ही पड़ता।
कार का मालिकाना हक कई बार बदला गया
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, कार का मालिकाना हक कई बार बदला जा चुका है। इसे पहले नदीम को बेचा गया। इसके बाद फरीदाबाद के सेकेंड हेंड डीलर को। इसके बाद यह गाड़ी आमिर ने खरीदी, इसके बाद तारीक ने, जिस पर फरीदाबाद के आतंकी मॉड्यूल से जुड़े होने का संदेह है। इसके बाद मोहम्मद उमर ने इसे खरीद लिया था।
क्या यह आत्मघाती हमला नहीं था?
समाचार एजेंसी ANI को सूत्रों ने बताया कि यह आत्मघाती हमला नहीं था। संदिग्ध ने घबराहट में विस्फोट किया। बम पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ था, इसलिए इसका प्रभाव सीमित रहा। विस्फोट से कोई गड्ढा नहीं बना और न ही कोई छर्रे या प्रक्षेपास्त्र मिले। विस्फोट के समय वाहन गतिमान था और आईईडी भारी जनहानि करने के लिए सुसज्जित नहीं था। माना जा रहा है कि दिल्ली-NCR और पुलवामा में कई स्थानों पर सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की गई छापेमारी में भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद होने के कारण संदिग्ध ने बढ़ते दबाव के चलते जल्दबाजी में कदम उठाया।
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