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दिल्ली में कृत्रिम बारिश से कम होगा प्रदूषण? जान लीजिए क्या है क्लाउड सीडिंग और इस पर एक्सपर्ट्स की राय

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नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली इन दिनों धुआं-धुआं सी नजर आ रही है। दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर के कई इलाकों का एक्यूआई 400 के करीब या पार पहुंच गया था। हालात ये हैं कि स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने लोगों से इन दिनों मॉर्निंग वॉक न करने की सलाह दी है। अब दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण को कम करने के लिए जल्द से जल्द कृत्रिम बारिश कराने जा रही है। लेकिन इस पर भी सवाल उठ रहे हैं क्या क्लाउड सीडिंग से आसमान साफ हो सकता है? जानते हैं क्या है इस पर विशेषज्ञों की राय....

दिल्ली में शुक्रवार सुबह को वायु गुणवत्ता में मामूली सुधार हुआ और यह ‘बेहद खराब’ से 290 AQI ‘खराब’ श्रेणी में पहुंच गई। हालांकि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के समीर ऐप के अनुसार, आनंद विहार में वायु गुणवत्ता सूचकांक 403 दर्ज किया गया जो गंभीर श्रेणी में आता है। यह सभी निगरानी केंद्रों में सबसे अधिक है। वहीं अब वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार कृत्रिम बारिश कराने जा रही है।

29 अक्टूबर को हो सकती है कृत्रिम बारिश
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने गुरुवार को एक्स पर पोस्ट कर कहा, दिल्ली में पहली बार क्लाउड सीडिंग के माध्यम से कृत्रिम वर्षा कराने की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। आज विशेषज्ञों द्वारा बुराड़ी क्षेत्र में इसका सफल परीक्षण किया गया है। मौसम विभाग ने 28, 29 और 30 अक्टूबर को बादलों की उपस्थिति की संभावना जताई है। यदि परिस्थितियां अनुकूल रहीं, तो 29 अक्टूबर को दिल्ली पहली कृत्रिम बारिश का अनुभव करेगी।


सीएम ने आगे कहा, 'यह पहल न सिर्फ तकनीकी दृष्टि से ऐतिहासिक है, बल्कि दिल्ली में प्रदूषण से निपटने का एक वैज्ञानिक तरीका भी स्थापित करने जा रही है। सरकार का उद्देश्य है कि इस नवाचार के माध्यम से राजधानी की हवा को स्वच्छ और वातावरण को संतुलित बनाया जा सके।'

क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बादलों में कुछ खास तरह के केमिकल छोड़े जाते हैं ताकि वे पानी की बूंदों में बदल सकें और बारिश हो सके। यह तब किया जाता है जब बादल तो हों, लेकिन उनमें बारिश कराने लायक नमी न हो। इस तकनीक से सूखे इलाकों में या जहाँ पानी की कमी हो, वहाँ मदद मिल सकती है।

यह ट्रायल दिल्ली में पानी की कमी को दूर करने और प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कृत्रिम बारिश से न केवल पानी की आपूर्ति बढ़ाई जा सकती है, बल्कि हवा में घुले प्रदूषण कणों को भी नीचे लाया जा सकता है। हालांकि, इस तकनीक की सफलता बादलों की स्थिति और हवा में मौजूद नमी पर निर्भर करती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यह तकनीक सफल होती है, तो भविष्य में इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा सकता है।

दिल्ली में कृत्रिम बारिश से कम होगा प्रदूषण?
प्रदूषण को कम करने के लिए बारिश वरदान साबित होती है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि हल्की से मध्यम बारिश हवा की गुणवत्ता को कुछ समय के लिए सुधार सकती है। मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कृत्रिम बारिश से दिल्ली की AQI 50 से 80 प्वाइंट तक कम हो सकता है, हालांकि यह बारिश की तीव्रता पर भी निर्भर करता है। यह हवा में घुसे भारी कणों PM 2.5 और PM10, जो कि सर्दियों के मौसम में अधिक होते हैं उन्हें नीचे बैठा सकता है। हालांकि, यह राहत ज्यादा समय तक नहीं टिकती। गाड़ियों, निर्माण स्थलों, पराली जलाने और उद्योगों से होने वाला प्रदूषण जारी रहने पर कुछ दिनों में AQI फिर से बढ़ जाता है। इसके लिए बड़े स्तर पर समाधान की जरूरत है।

भारत में पहले भी हो चुकी है क्लाउड सीडिंग?
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग पहली बार हो रही है लेकिन यह भारत में पहली बार नहीं है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य सूखे के समय खेती के लिए कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश कर चुके हैं। मौसम विभाग द्वारा इसका प्रयोग पहली बार 1972 में किया गया था। हाल ही में, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने सूखाग्रस्त जिलों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया। लेकिन इन प्रयोगों की सफलता पर वैज्ञानिक राय अभी तक पक्की नहीं है।

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए CAIPEEX एक्सपेरिमेंट के अनुसार, सही परिस्थितियों में बारिश 15-20 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है। लेकिन दिल्ली जैसे घने शहरी इलाके में, खासकर सूखी सर्दियों के दौरान, इसे आजमाना अभी बाकी है।
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