नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में परमाणु परीक्षण को लेकर कई तरह के दावे किए। उन्होंने रूस, चीन और पाकिस्तान समेत कई देशों पर परमाणु परीक्षण के आरोप लगाए। ट्रंप ने कहा कि वे अंडरग्राउंड टेस्ट करते हैं, लेकिन बताते नहीं हैं। अब हम भी परमाणु परीक्षण करेंगे क्योंकि अन्य देश भी ऐसा करते हैं। ट्रंप के इस दावे से एक बार फिर न्यूक्लियर वॉर बढ़ने और परमाणु परीक्षण में इजाफे की आशंका जताई जा रही। जैसे ही न्यूक्लियर टेस्टिंग का मुद्दा उठा तो हर कोई ये जानना चाहता है आखिर न्यूक्लियर साइट्स कब, कहां और कैसे बनाए जाते हैं। ये काम कैसे करते हैं। न्यूक्लियर प्लांट्स को लेकर किन बातों का ध्यान रखा जाता है। जानिए सब कुछ।
न्यूक्लियर टेस्टिंग साइट पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
न्यूक्लियर बम टेस्ट का जिक्र आते ही सबके मन में पहला सवाल यही उठता है कि आखिर इसके परीक्षण स्थलों का चुनाव कैसे होता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, परमाणु परीक्षण साइट्स का चुनाव बेहद सावधानीपूर्वक और कई चरणों वाली प्रक्रिया है। इसमें साइंटफिक प्वाइंट्स के साथ-साथ गोपनीयता और सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण कारकों का ध्यान रखा जाता है। किसी भी परमाणु परीक्षण स्थल को चुनने के लिए तीन मुख्य बातें होती हैं।
जियो स्थिति समेत 3 बातों का खास ध्यान
न्यूक्लियर बम टेस्टिंग साइट्स के लिए सबसे पहले भूवैज्ञानिक स्थिरता देखी जाती है। साल 1963 से खुले में परमाणु परीक्षण पर रोक लगा दी गई है। इसलिए, देशों को अपने हथियार परखने के लिए गहरे भूमिगत शाफ्ट यानी गड्ढे का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे में, जमीन की बनावट बहुत मायने रखती है।
आबादी से दूर बनाए जाते हैं ऐसे ठिकानेजिस जगह परीक्षण करना हो, वह भूकंपीय रूप से शांत होनी चाहिए। वहां कोई सक्रिय फॉल्ट नहीं होनी चाहिए जिससे भूकंप आ सके। साथ ही, वहां की चट्टानें सख्त और सूखी होनी चाहिए। ऐसा इसलिए ताकि जब गड्ढे को सील किया जाए, तो रेडियोधर्मी गैसें बाहर न निकल सकें।
परीक्षण स्थल जमीन में बहुत गहरा होना चाहिए
दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है हाइड्रो-जियोलॉजी, यानी पानी का अध्ययन। परीक्षण स्थल जमीन में बहुत गहरा होना चाहिए, सैकड़ों मीटर नीचे। ऐसा इसलिए ताकि विकिरण (रेडिएशन) भूजल को जहरीला न बना सके। उदाहरण के लिए, भारत के पोखरण परीक्षण स्थल पर, पानी का स्तर 500 मीटर से भी ज्यादा गहरा है।
ऑपरेशन सीक्रेसी का रखा जाता है ध्यान
तीसरा और आखिरी कारक है बफर जोन। यह सुनिश्चित किया जाता है कि परीक्षण स्थल के आसपास कोई आबादी न हो। साथ ही, ऑपरेशनल सीक्रेसी (संचालन की गोपनीयता) बनी रहनी चाहिए। इससे दूसरे देशों को परमाणु परीक्षण का पता नहीं चल पाता।
अमेरिका ने अब तक किए कितने परीक्षण
दुनिया भर में परमाणु हथियारों के परीक्षण स्थलों की बात करें तो अमेरिका पहला देश था जिसने परमाणु हथियारों का परीक्षण और उपयोग किया। उसने अपना पहला बम न्यू मैक्सिको के व्हाइट सैंड्स में परखा था। अमेरिका के पास नेवादा में नेवादा नेशनल सिक्योरिटी टेस्ट साइट है। 1992 के बाद से यूएस ने कोई हथियार परीक्षण नहीं किया है। हालांकि, अब वो फिर इस परीक्षण केंद्र को खोल सकता है।
भारत ने 1998 के बाद नहीं की कोई टेस्टिंग
भारत ने भी पूर्व में परमाणु परीक्षण किए हैं। राजस्थान के जैसलमेर स्थित पोखरण शहर में न्यूक्लियर बम टेस्टिंग साइट है। शहर से लगभग 26 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित सेना के पोखरण परीक्षण रेंज में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। मई 1998 में, भारत ने यहां परमाणु हथियार परखे, जिससे वह दुनिया का छठा परमाणु हथियार संपन्न देश बन गया। भारत ने आगे परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने का भी ऐलान किया।
परमाणु हथियार संपन्न देशों को लेकर दावा
ये भी जानना जरूरी है कि नौ परमाणु-हथियार संपन्न देशों में से इजरायल एकमात्र ऐसा देश है जिसने कभी भी पुष्टि किया हुआ परमाणु परीक्षण नहीं किया है। अन्य आठ देशों ने 1945 के बाद से 2,000 से अधिक परमाणु उपकरणों का विस्फोट किया है। इनमें से 80 फीसदी से अधिक परीक्षण अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ की ओर से किए गए थे।
कैसे परमाणु बम से तबाह हो गया था जापान
न्यूक्लियर बम बेहद खतरनाक होते हैं, इससे शहर के शहर तबाह होने की आशंका रहती है। यही वजह है कि परमाणु बमों की टेस्टिंग साइट को जमीन में कई गुना अंदर या फिर गहरे पानी में परीक्षण होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जरा सी गलती से पूरा देश भयावह हालात से गुजर सकता है। जापान का इसका गवाह है, जहां 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया था। इसके तीन दिन बाद नागासाकी शहर पर भी ऐसा ही कदम उठाया गया, जिसका भयानक हश्र हुआ। पूरा शहर परमाणु हमलों से तबाह हो गया था।
न्यूक्लियर प्लांट्स को लेकर क्या हैं जरूरी प्वाइंट्स
न्यूक्लियर प्लांट्स परमाणु विखंडन की प्रक्रिया से बनाए जाते हैं, जिसमें नाभिकीय रिएक्टर के अंदर परमाणुओं के नाभिक को तोड़कर ऊर्जा निकाली जाती है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न गर्मी का उपयोग पानी को भाप में बदलने के लिए किया जाता है, जो फिर विद्युत जनरेटर को घुमाकर बिजली पैदा करती है। भारत में, ऐसे प्लांट भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) द्वारा स्थापित किए जाते हैं, और इनके निर्माण में वर्षों लग जाते हैं, जैसे कि राजस्थान के बांसवाड़ा में नया प्लांट 2036 तक पूरा होने की उम्मीद है।
न्यूक्लियर प्लांट्स कब-कहां बनाए जाते हैं
न्यूक्लियर प्लांट्स के निर्माण की प्रक्रिया सालों तक चलती है। उदाहरण के लिए, राजस्थान के बांसवाड़ा में नए प्लांट का उद्घाटन 2025 में हुआ, लेकिन इसकी पहली यूनिट 2031 तक शुरू होने और पूरी परियोजना 2036 तक पूरी होने की उम्मीद है। ऐसे प्लांट उन जगहों पर बनाए जाते हैं जहां पानी की पर्याप्त उपलब्धता हो। ऐसा इसलिए क्योंकि पानी का इस्तेमाल शीतलन और भाप बनाने के लिए किया जाता है। ये जगहें आबादी वाले क्षेत्रों से दूर बनाए जाते हैं।
न्यूक्लियर टेस्टिंग साइट पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
न्यूक्लियर बम टेस्ट का जिक्र आते ही सबके मन में पहला सवाल यही उठता है कि आखिर इसके परीक्षण स्थलों का चुनाव कैसे होता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, परमाणु परीक्षण साइट्स का चुनाव बेहद सावधानीपूर्वक और कई चरणों वाली प्रक्रिया है। इसमें साइंटफिक प्वाइंट्स के साथ-साथ गोपनीयता और सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण कारकों का ध्यान रखा जाता है। किसी भी परमाणु परीक्षण स्थल को चुनने के लिए तीन मुख्य बातें होती हैं।
जियो स्थिति समेत 3 बातों का खास ध्यान
न्यूक्लियर बम टेस्टिंग साइट्स के लिए सबसे पहले भूवैज्ञानिक स्थिरता देखी जाती है। साल 1963 से खुले में परमाणु परीक्षण पर रोक लगा दी गई है। इसलिए, देशों को अपने हथियार परखने के लिए गहरे भूमिगत शाफ्ट यानी गड्ढे का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे में, जमीन की बनावट बहुत मायने रखती है।
आबादी से दूर बनाए जाते हैं ऐसे ठिकानेजिस जगह परीक्षण करना हो, वह भूकंपीय रूप से शांत होनी चाहिए। वहां कोई सक्रिय फॉल्ट नहीं होनी चाहिए जिससे भूकंप आ सके। साथ ही, वहां की चट्टानें सख्त और सूखी होनी चाहिए। ऐसा इसलिए ताकि जब गड्ढे को सील किया जाए, तो रेडियोधर्मी गैसें बाहर न निकल सकें।
परीक्षण स्थल जमीन में बहुत गहरा होना चाहिए
दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है हाइड्रो-जियोलॉजी, यानी पानी का अध्ययन। परीक्षण स्थल जमीन में बहुत गहरा होना चाहिए, सैकड़ों मीटर नीचे। ऐसा इसलिए ताकि विकिरण (रेडिएशन) भूजल को जहरीला न बना सके। उदाहरण के लिए, भारत के पोखरण परीक्षण स्थल पर, पानी का स्तर 500 मीटर से भी ज्यादा गहरा है।
ऑपरेशन सीक्रेसी का रखा जाता है ध्यान
तीसरा और आखिरी कारक है बफर जोन। यह सुनिश्चित किया जाता है कि परीक्षण स्थल के आसपास कोई आबादी न हो। साथ ही, ऑपरेशनल सीक्रेसी (संचालन की गोपनीयता) बनी रहनी चाहिए। इससे दूसरे देशों को परमाणु परीक्षण का पता नहीं चल पाता।
अमेरिका ने अब तक किए कितने परीक्षण
दुनिया भर में परमाणु हथियारों के परीक्षण स्थलों की बात करें तो अमेरिका पहला देश था जिसने परमाणु हथियारों का परीक्षण और उपयोग किया। उसने अपना पहला बम न्यू मैक्सिको के व्हाइट सैंड्स में परखा था। अमेरिका के पास नेवादा में नेवादा नेशनल सिक्योरिटी टेस्ट साइट है। 1992 के बाद से यूएस ने कोई हथियार परीक्षण नहीं किया है। हालांकि, अब वो फिर इस परीक्षण केंद्र को खोल सकता है।
भारत ने 1998 के बाद नहीं की कोई टेस्टिंग
भारत ने भी पूर्व में परमाणु परीक्षण किए हैं। राजस्थान के जैसलमेर स्थित पोखरण शहर में न्यूक्लियर बम टेस्टिंग साइट है। शहर से लगभग 26 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित सेना के पोखरण परीक्षण रेंज में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। मई 1998 में, भारत ने यहां परमाणु हथियार परखे, जिससे वह दुनिया का छठा परमाणु हथियार संपन्न देश बन गया। भारत ने आगे परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने का भी ऐलान किया।
परमाणु हथियार संपन्न देशों को लेकर दावा
ये भी जानना जरूरी है कि नौ परमाणु-हथियार संपन्न देशों में से इजरायल एकमात्र ऐसा देश है जिसने कभी भी पुष्टि किया हुआ परमाणु परीक्षण नहीं किया है। अन्य आठ देशों ने 1945 के बाद से 2,000 से अधिक परमाणु उपकरणों का विस्फोट किया है। इनमें से 80 फीसदी से अधिक परीक्षण अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ की ओर से किए गए थे।
कैसे परमाणु बम से तबाह हो गया था जापान
न्यूक्लियर बम बेहद खतरनाक होते हैं, इससे शहर के शहर तबाह होने की आशंका रहती है। यही वजह है कि परमाणु बमों की टेस्टिंग साइट को जमीन में कई गुना अंदर या फिर गहरे पानी में परीक्षण होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जरा सी गलती से पूरा देश भयावह हालात से गुजर सकता है। जापान का इसका गवाह है, जहां 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया था। इसके तीन दिन बाद नागासाकी शहर पर भी ऐसा ही कदम उठाया गया, जिसका भयानक हश्र हुआ। पूरा शहर परमाणु हमलों से तबाह हो गया था।
न्यूक्लियर प्लांट्स को लेकर क्या हैं जरूरी प्वाइंट्स
न्यूक्लियर प्लांट्स परमाणु विखंडन की प्रक्रिया से बनाए जाते हैं, जिसमें नाभिकीय रिएक्टर के अंदर परमाणुओं के नाभिक को तोड़कर ऊर्जा निकाली जाती है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न गर्मी का उपयोग पानी को भाप में बदलने के लिए किया जाता है, जो फिर विद्युत जनरेटर को घुमाकर बिजली पैदा करती है। भारत में, ऐसे प्लांट भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) द्वारा स्थापित किए जाते हैं, और इनके निर्माण में वर्षों लग जाते हैं, जैसे कि राजस्थान के बांसवाड़ा में नया प्लांट 2036 तक पूरा होने की उम्मीद है।
न्यूक्लियर प्लांट्स कब-कहां बनाए जाते हैं
न्यूक्लियर प्लांट्स के निर्माण की प्रक्रिया सालों तक चलती है। उदाहरण के लिए, राजस्थान के बांसवाड़ा में नए प्लांट का उद्घाटन 2025 में हुआ, लेकिन इसकी पहली यूनिट 2031 तक शुरू होने और पूरी परियोजना 2036 तक पूरी होने की उम्मीद है। ऐसे प्लांट उन जगहों पर बनाए जाते हैं जहां पानी की पर्याप्त उपलब्धता हो। ऐसा इसलिए क्योंकि पानी का इस्तेमाल शीतलन और भाप बनाने के लिए किया जाता है। ये जगहें आबादी वाले क्षेत्रों से दूर बनाए जाते हैं।
You may also like

फर्जी डिग्री घोटाला: ईडी ने मोनाड विश्वविद्यालय के 15 ठिकानों पर की छापेमारी, 43 लाख रुपए की नकदी बरामद

छठ और मतदान के बाद मुजफ्फरपुर जंक्शन पर यात्रियों की भारी भीड़, रेलवे ने बनाया दो होल्डिंग एरिया

आवारा कुत्तों के संबंध में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मेनका गांधी क्या कहा?

अयोध्या मेडिकल कॉलेज का अनोखा फरमान, गलती करने पर अपनी कॉपी में लिखो 'राम राम' –

मेरठ: पत्नी ने प्रेमी संग मिलकर पति को मारकर तालाब में फेंका, तीन आरोपी गिरफ्तार –




