पटना: जब से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. ने तेजस्वी यादव को अपना सीएम उम्मीदवार घोषित किया है, तब से उनकी ओर से BJP पर राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश हो रही है कि वह भी अपना सीएम उम्मीदवार घोषित करे। BJP ने यह जरूर कहा है कि चुनाव मौजूदा सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है, लेकिन उसने अब तक उन्हें NDA का सीएम उम्मीदवार नहीं घोषित किया है। इससे सियासी उलझन पैदा हुई है। विपक्षी दबाव के बावजूद अभी तक औपचारिक तौर पर कोई क्लैरिटी नहीं दी गई है। दरअसल, इस मसले पर BJP भारी दुविधा में है। यही वजह है कि वह इस सवाल पर कोई साफ स्टैंड लेने से हिचक रही है।
नाम घोषित न करने का तर्क
BJP नेताओं के अनुसार, नीतीश कुमार को सीएम उम्मीदवार नहीं बनाने के पीछे सियासी मजबूरी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ मौकों पर इस बारे में सवाल किए जाने पर कहा कि चुनाव बाद विधायक मिलकर अपना नेता तय करेंगे। दरअसल, BJP कार्यकर्ताओं और नेताओं को कुछ सालों से लगता रहा है कि राज्य में उन्हें अपनी सियासी ताकत के हिसाब से सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। बीच-बीच में उनके नेता BJP सीएम की बात भी उठाते रहे हैं। ऐसे में पार्टी चुनाव से ठीक पहले अपने कार्यकर्ताओं की इस चाहत को पूरी तरह इग्नोर नहीं कर सकती।
पार्टी में एक वर्ग का मानना है कि अगर नीतीश कुमार का नाम चुनाव से पहले घोषित कर दिया जाएगा तो उसका बुरा असर पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ सकता है। यही कारण है कि वे इस मसले पर पैदा हुई अस्पष्टता का सियासी लाभ लेना चाहते हैं।
सूत्रों के अनुसार BJP की अंदरूनी रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र था कि अगर नीतीश कुमार का नाम बतौर सीएम उम्मीदवार घोषित किया जाता है तो इसका असर उनके कोर वोटरों पर पड़ सकता है। वे पार्टी के प्रति उदासीन हो सकते हैं। इस लिहाज से यह सोची-समझी रणनीति ही कही जाएगी जिसके तहत नीतीश कुमार को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी सहित तमाम शीर्ष नेता परोक्ष रूप से नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार कर संतुलन बनाने की कोशिश कर चुके हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस रणनीति में एक सियासी जोखिम भी है। जोखिम यह है कि कहीं नीतीश को सीएम उम्मीदवार घोषित न करने का नेगेटिव असर JDU के कोर वोटरों पर न पड़ जाए। दरअसल, 20 सालों से सत्ता में रहने के बावजूद राज्य में यह सियासी सच है कि ऐसा एक स्पष्ट वोटर समूह है, जो चुनाव में नीतीश कुमार के साथ रहता है। ये समूह सिर्फ नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहता है। ऐसे में अगर इस मोर्चे पर स्पष्टता नहीं आएगी तो इन वोटरों के उत्साह पर असर पड़ सकता है।
I.N.D.I.A. के लिए मौका
यही कारण है कि JDU नेता सभी सार्वजनिक सभाओं में बहुत ही मुखर तरीके से बता रहे हैं कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहेंगे। हालांकि स्पष्ट औपचारिक ऐलान न होने से इन दावों का कितना असर होगा, इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है। NDA हलकों में यह बात महसूस की जा रही है। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. भी इस स्थिति को समझ रहा है। वह इसमें अपने लिए सियासी मौका दिख रहा है। यही कारण है कि तेजस्वी यादव और I.N.D.I.A. ब्लॉक के अन्य नेता इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना रहे हैं। अगर इसका असर BJP-JDU के बीच वोट ट्रांसफर पर हुआ तो इसका बड़ा लाभ विपक्षी गठबंधन को मिल सकता है।
नाम घोषित न करने का तर्क
BJP नेताओं के अनुसार, नीतीश कुमार को सीएम उम्मीदवार नहीं बनाने के पीछे सियासी मजबूरी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ मौकों पर इस बारे में सवाल किए जाने पर कहा कि चुनाव बाद विधायक मिलकर अपना नेता तय करेंगे। दरअसल, BJP कार्यकर्ताओं और नेताओं को कुछ सालों से लगता रहा है कि राज्य में उन्हें अपनी सियासी ताकत के हिसाब से सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। बीच-बीच में उनके नेता BJP सीएम की बात भी उठाते रहे हैं। ऐसे में पार्टी चुनाव से ठीक पहले अपने कार्यकर्ताओं की इस चाहत को पूरी तरह इग्नोर नहीं कर सकती।
पार्टी में एक वर्ग का मानना है कि अगर नीतीश कुमार का नाम चुनाव से पहले घोषित कर दिया जाएगा तो उसका बुरा असर पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ सकता है। यही कारण है कि वे इस मसले पर पैदा हुई अस्पष्टता का सियासी लाभ लेना चाहते हैं।
सूत्रों के अनुसार BJP की अंदरूनी रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र था कि अगर नीतीश कुमार का नाम बतौर सीएम उम्मीदवार घोषित किया जाता है तो इसका असर उनके कोर वोटरों पर पड़ सकता है। वे पार्टी के प्रति उदासीन हो सकते हैं। इस लिहाज से यह सोची-समझी रणनीति ही कही जाएगी जिसके तहत नीतीश कुमार को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी सहित तमाम शीर्ष नेता परोक्ष रूप से नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार कर संतुलन बनाने की कोशिश कर चुके हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस रणनीति में एक सियासी जोखिम भी है। जोखिम यह है कि कहीं नीतीश को सीएम उम्मीदवार घोषित न करने का नेगेटिव असर JDU के कोर वोटरों पर न पड़ जाए। दरअसल, 20 सालों से सत्ता में रहने के बावजूद राज्य में यह सियासी सच है कि ऐसा एक स्पष्ट वोटर समूह है, जो चुनाव में नीतीश कुमार के साथ रहता है। ये समूह सिर्फ नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहता है। ऐसे में अगर इस मोर्चे पर स्पष्टता नहीं आएगी तो इन वोटरों के उत्साह पर असर पड़ सकता है।
I.N.D.I.A. के लिए मौका
यही कारण है कि JDU नेता सभी सार्वजनिक सभाओं में बहुत ही मुखर तरीके से बता रहे हैं कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहेंगे। हालांकि स्पष्ट औपचारिक ऐलान न होने से इन दावों का कितना असर होगा, इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है। NDA हलकों में यह बात महसूस की जा रही है। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. भी इस स्थिति को समझ रहा है। वह इसमें अपने लिए सियासी मौका दिख रहा है। यही कारण है कि तेजस्वी यादव और I.N.D.I.A. ब्लॉक के अन्य नेता इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना रहे हैं। अगर इसका असर BJP-JDU के बीच वोट ट्रांसफर पर हुआ तो इसका बड़ा लाभ विपक्षी गठबंधन को मिल सकता है।
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