कर्नाटक में जाति जनगणना की लीक हुई रिपोर्ट ने राज्य की राजनीति में तूफान ला दिया है। इस रिपोर्ट के तथ्यों पर उठाए जा रहे सवालों को छोड़ दें, तो भी राज्य की कांग्रेस सरकार के लिए इसे स्वीकार करना आसान नहीं होगा। इससे सियासी और सामाजिक समीकरण पूरी तरह बदल जाएंगे, जिसका असर देश के बाकी राज्यों पर भी पड़ेगा। ऐसे में जब गुरुवार को सीएम सिद्धारमैया अपनी कैबिनेट के साथ इस मामले पर चर्चा करेंगे, तो उनके सामने बहुत सारे सवाल होंगे। अनुमान से अलग आंकड़े: रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी अनुमान से ज्यादा है। OBC के लिए आरक्षण को 32% से बढ़ाकर 51% और मुस्लिम समुदाय के लिए 4% से 8% करने की सिफारिश की गई है। लेकिन, सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों की ओर से, जिनकी जनसंख्या अनुमान से कम बताई जा रही है। कर्नाटक की राजनीति में ये दोनों जातियां बेहद प्रभावी हैं। सामाजिक रूप से भी दोनों का खासा प्रभाव है। जातीय गोलबंदी: कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि वह जाति जनगणना का समर्थन करती रही है। राहुल गांधी कई मौकों पर कह चुके हैं कि जिसकी जितनी आबादी है, उसकी उतनी ही हिस्सेदारी होनी चाहिए। लेकिन, इस पर कांग्रेस के भीतर से ही विरोध के सुर उठ रहे हैं। यह ऐसा मुद्दा है, जिसने जातीय आधार पर नेताओं की गोलबंदी कर दी है। वोक्कालिगा समुदाय से आने वाले डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने अपने धड़े के विधायकों के साथ मुलाकात की है ताकि कैबिनेट मीटिंग में सही ढंग से पक्ष रखा जा सके। रिपोर्ट पर सवाल: सिद्धारमैया और कांग्रेस के सामने अपनों को मनाने की ही नहीं, रिपोर्ट को विश्वसनीय दिखाने की भी चुनौती है। आरोप लग रहे हैं कि रिपोर्ट को वैज्ञानिक तरीके से नहीं तैयार किया गया है। कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सर्वे टीम उनके घर नहीं पहुंची तो फिर रिपोर्ट कैसे तैयार की गई? यह भी कहा जा रहा है कि कई उपजातियों ने आरक्षण का फायदा लेने के लिए खुद को अलग कैटिगरी में दर्ज करा दिया। ये दोनों ही बिंदु गंभीर हैं और सरकार को इन्हें जरूर देखना चाहिए। कानूनी अड़चन: रिपोर्ट के आधार पर कर्नाटक में कुल आरक्षण करीब 75% तक हो जाएगा, सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% की सीमा से कहीं अधिक। यानी, कानूनी अड़चन भी आ सकती है। ऐसे में कांग्रेस सरकार की राह बहुत मुश्किल होने वाली है।
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