दक्षिण भारत के चर्चित अभिनेता से राजनेता बने कमल हासन ने हाल ही में राजनीतिक रैलियों में उमड़ने वाली भारी भीड़ के पीछे की सच्चाई पर अपनी राय दी है। उन्होंने कहा है कि भले ही रैलियों में बड़ी संख्या में लोग जुटते हों, इसका मतलब यह नहीं कि सभी मतदाता चुनाव में अपना वोट डालेंगे।
कमल हासन का यह बयान उन तमाम राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी है, जो रैली की भीड़ को ही चुनावी सफलता का पैमाना मान लेते हैं। उन्होंने कहा कि भीड़ में आने वाले कई लोग अपने वोट का सही इस्तेमाल नहीं करते, या फिर कई बार वे चुनाव प्रक्रिया से पूरी तरह जुड़े ही नहीं होते।
कमल हासन का बयान
हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कमल हासन ने कहा, “रैलियों में भारी भीड़ देख कर अक्सर राजनीतिक दल अपनी जीत का दावा कर लेते हैं, लेकिन वोटिंग का आंकड़ा हमेशा उस भीड़ के अनुरूप नहीं होता। कुछ लोग सिर्फ उत्साह दिखाने आते हैं, कुछ को राजनीतिक प्रक्रिया की पूरी समझ नहीं होती, और कुछ लोग मतदान के दिन अपने मताधिकार का प्रयोग करना ही भूल जाते हैं।”
उन्होंने आगे जोड़ा, “राजनीति में सिर्फ रैली की भीड़ से ज्यादा जरूरी है जनता के बीच जाकर उनके मुद्दों को समझना और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना।”
वोटिंग में कमी की वजहें
कमल हासन ने चुनाव में कम वोटिंग की समस्या पर भी प्रकाश डाला। उनका मानना है कि मतदाता सक्रिय न होने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें शिक्षा की कमी, राजनीतिक सिस्टम पर भरोसे की कमी, और अपने वोट से बदलाव की उम्मीद का ना होना प्रमुख हैं।
उन्होंने कहा, “जब जनता अपने वोट के महत्व को समझती है और यह जानती है कि उनका एक-एक वोट बड़े बदलाव ला सकता है, तब ही लोकतंत्र मजबूत होगा।”
रैली और वास्तविकता में फर्क
राजनीति में अक्सर रैलियों की भीड़ को सत्ता की कुर्सी पर बैठने का आधार माना जाता है, लेकिन कमल हासन के अनुसार, यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। उन्होंने कहा कि रैलियों में शामिल होने वाले लोग कई बार केवल समारोह में शामिल होते हैं, लेकिन वे मतदान केंद्र तक पहुंचने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
इसके अलावा, उन्होंने राजनीतिक दलों को सलाह दी कि वे रैलियों के बजाय grassroots स्तर पर जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनें और उनका समाधान करें।
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