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बिहार चुनाव : मनेर का लड्डू जितना मीठा उतना ही खट्टा है इस सीट का राजनीतिक इतिहास, ऐसे बन रहा समीकरण

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Patna, 25 अक्टूबर . Patna जिले का मनेर विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजनीति में सिर्फ एक चुनावी सीट नहीं, बल्कि यह वह धरती है जहां सूफी संतों की पवित्र वाणी, संस्कृत के महानतम विद्वानों की शिक्षा और राजनीति के सबसे कड़े मुकाबले आपस में मिलते हैं.

गंगा और सोन नदियों के पवित्र संगम पर बसा यह कस्बा, अपने ‘मनेर के लड्डू’ की मिठास के साथ-साथ, बिहार के Political समीकरणों को भी सालों से खट्टा-मीठा एहसास देता रहा है.

मनेर विधानसभा क्षेत्र, पाटलिपुत्र Lok Sabha क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. राजनीति में इस सीट की भूमिका निर्णायक रही है, जहां वर्षों से यादव समुदाय का वर्चस्व रहा है.

इस जातीय समीकरण के कारण, जिस पार्टी ने यादव वोट बैंक को सफलतापूर्वक साधा, उसकी जीत लगभग सुनिश्चित रही. यही कारण है कि यह सीट लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का एक मजबूत गढ़ बन चुकी है.

मनेर के Political इतिहास में शुरुआत में कांग्रेस पार्टी ने 7 बार जीत दर्ज की थी, जबकि आरजेडी 5 बार विजयी हुई है. निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी दो बार यहां से बाजी मारी है, लेकिन पिछले एक दशक से यहां राजद का दबदबा कायम है.

राजद के मौजूदा विधायक भाई वीरेंद्र इस सीट से लगातार तीन बार जीत दर्ज कर चुके हैं.

2020 विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के निखिल आनंद को 32,917 वोटों के बड़े अंतर से हराया.

2015 में उन्होंने श्रीकांत निराला को 22,828 वोटों से पराजित किया. 2010 में उन्होंने अपनी जीत का सिलसिला शुरू किया था.

मनेर की राजनीति में दल-बदल का चलन भी खूब रहा है. यादव परिवार (जिसने कुल आठ बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है) ने लगभग सभी प्रमुख दलों से चुनाव लड़ा है.

यह क्षेत्र पाटलिपुत्र Lok Sabha क्षेत्र के तहत आता है, जहां राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को 2009 में हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन उनकी बेटी मीसा भारती ने 2024 के Lok Sabha चुनाव में जीत हासिल करके इस सीट पर पार्टी की उपस्थिति को फिर से मजबूत किया. 2024 के Lok Sabha चुनाव में मनेर विधानसभा क्षेत्र ने राजद को 34,459 वोटों की बढ़त दी, जो शायद नवंबर महीने में शुरू हो रहे विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी की मजबूत स्थिति को दर्शाता है.

मनेर, जिसे प्राचीन काल में ‘मनियार मठान’ यानी ‘संगीतमय नगरी’ के नाम से जाना जाता था, इसकी जड़ें उतनी ही पुरानी हैं जितनी की पाटलिपुत्र की. यह वह स्थान है जहां संस्कृत के महान व्याकरणाचार्य पाणिनि ने अपनी विश्व प्रसिद्ध रचना ‘अष्टाध्यायी’ की रचना से पहले अध्ययन किया था.

आज, मनेर शरीफ के नाम से मशहूर यह जगह 13वीं सदी के सूफी संत मखदूम याह्या मनेरी और 16वीं सदी के मखदूम शाह दौलत की दरगाहों के लिए प्रसिद्ध है, जिन्होंने इसे इस्लामी शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बनाया. हालांकि, इस पर बौद्ध और जैन परंपराओं का भी गहरा असर रहा है. नदी के किनारे स्थित एक जर्जर किला आज भी इसके गौरवशाली अतीत की कहानी सुनाता है, जो इस्लामी प्रभाव से पहले यहां मौजूद था.

इतिहास और धर्म से परे, मनेर की पहचान उसकी एक खास मिठाई ‘मनेर का लड्डू’ से है. कहा जाता है कि इन लड्डुओं का बेमिसाल स्वाद सोन नदी के मीठे पानी के कारण आता है, जिसे शुद्ध घी और अन्य सामग्री के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है.

एनएच-30 के किनारे इन लड्डुओं की दुकानें लगी रहती हैं, और इनकी डिमांड सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये विदेशों में भी उपहार स्वरूप भेजे जाते हैं. यह मिठाई ग्रामीण और शहरी India के उस मेल को दर्शाती है, जहां परंपरा और आधुनिकता एक साथ आगे बढ़ रही है.

मनेर सिर्फ मीठे लड्डुओं की भूमि नहीं है, बल्कि यह बिहार की सांस्कृतिक विरासत और उसके कड़े Political संघर्षों की एक जीती-जागती कहानी है.

वीकेयू/जीकेटी

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