ब्यावर, 22 अक्टूबर . आधुनिकता की दौड़ के बीच Rajasthan के ब्यावर में ग्वाला समाज आज भी अपनी लगभग एक हजार वर्ष पुरानी अनूठी विरासत को सहेजे हुए है. ब्रिटिश काल से भी पूर्व शुरू हुई यह परंपरा गोवर्धन पूजा के अवसर पर पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाई जाती है. Wednesday को पूरे विधि विधान से गोवर्धन पूजा की गई.
गोवर्धन पूजा की तैयारी में समाज की महिलाएं गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाती हैं और उसे पुष्प, दीपक व रंगोली से सुसज्जित करती हैं. वे प्रसाद स्वरूप पूड़ी और खीर भी तैयार करती हैं.
इस परंपरा की विशेषता यह है कि पूजन का मुख्य कार्य समाज के पुरुषों द्वारा ही किया जाता है, महिलाएं पूजन में सीधे तौर पर भाग न लेकर केवल तैयारी और सजावट का जिम्मा संभालती हैं. यह आयोजन न केवल संस्कृति की गहरी जड़ों को दर्शाता है, बल्कि इसमें शामिल रस्में कौतूहल का विषय भी बनती हैं.
पूजन के उपरांत सभी श्रद्धालु धन और समृद्धि के प्रतीक गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कर नमन करते हैं. इसी दौरान आयोजन की सबसे विशिष्ट रस्म निभाई जाती है, जो कुंवारे युवकों पर केंद्रित होती है. समाज के अविवाहित युवक प्रसाद में चढ़ाई गई पूड़ी को अपने मुंह से उठाने का प्रयास करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो युवक एक ही बार में पूड़ी उठाने में सफल हो जाता है, उसका विवाह शीघ्र संपन्न होता है.
पूजन के बाद गोवर्धन जी को कपड़े से ढक दिया जाता है. इस परंपरा का समापन देव उठनी एकादशी के दिन होता है, जब एक बैल द्वारा विशेष विधि संपन्न कराई जाती है. इसके बाद ही ग्वाला समाज में विवाह समारोह सहित अन्य शुभ मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है.
ग्वाला मोहनलाल ने से बात करते हुए कहा कि यह परंपरा कई वर्षों से मनाई जाती है. इसमें मान्यता है कि कुंवारे युवक मुंह से प्रसाद को उठाते हैं, जिससे उनकी जल्द से जल्द शादी हो जाए और वह अपनी जिम्मेदारी निभा सकें. हम अपने ईस्ट देवा की पूजा करते हैं.
रामकिशोर ने से बात करते हुए कहा कि ग्वाला समाज इस पूजा को सदियों से कर रहा है. इस परंपरा को घर के बच्चे, बड़े और महिलाएं सब एक साथ मनाते हैं.
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–एसएके/डीएससी
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