पैसे की चाह किसे नहीं होती? लगभग हर कोई चाहता है कि कम समय और कम मेहनत में उसे खूब सारे पैसे मिल जाएं. इसके लिए लोग कई अलग-अलग पैतरे अपनाते हैं और कई बार ठगे भी जाते हैं. ऐसा ही कुछ होता था औरंगाबाद के छत्रपति संभाजीनगर में जहां एक बाबा लोगों को यह कहकर ठगता था कि वह पैसों की बारिश करवा सकता है.
कहानी की शुरुआत तब हुई, जब शहर के पुलिस आयुक्त प्रवीण पवार के पास एक गुप्त सूचना आई. बाबा पेट्रोल पंप के पास उस पॉश होटल में कुछ संदिग्ध लोग कई महीनों से ठहरे थे. खबर थी कि ये लोग अंधविश्वास और ठगी के खेल में लिप्त हैं. पुलिस ने तुरंत अपनी सबसे भरोसेमंद टीम को इस रहस्य को सुलझाने का जिम्मा सौंपा. इंस्पेक्टर संभाजी पवार, जिनकी हाजिरजवाबी और साहस की कहानियां पुलिस महकमे में मशहूर थीं, ने अपनी टीम के साथ तड़के होटल पर धावा बोल दिया.
जैसे ही पुलिस ने होटल के कमरे नंबर 305 में पहुंची, वहां विकास उत्तरवार नाम का एक शख्स छिपा था. विकास अपने आप को एक तांत्रिक बाबा बताता था. दूसरी ओर, कमरे नंबर 412 में उसके दो साथी, विलास कोहिले और शंकर कजाले, पुणे के एक व्यक्ति के नाम पर बुक किए गए कमरे में रह रहे थे. विलास वैजापुर तहसील के जुरुद गांव से था, जबकि शंकर छत्रपति संभाजीनगर के चिकलथाना का रहने वाला था. ये तीनों मिलकर एक ऐसा जाल बुन रहे थे, जिसमें लोग अपने सपनों के साथ-साथ अपनी मेहनत की कमाई भी गंवा बैठते थे.
पुलिस ने जब कमरों की तलाशी ली, तो वहां का नजारा भयानक था. मेज पर बिखरे हुए थे नकली नोट, सिंदूर की छोटी-छोटी डिब्बियां, सूखी जड़ें और सूखे नारियल. ये सारी चीजें उन अनुष्ठानों का हिस्सा थीं, जिनके जरिए ये ठग भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाते थे. बस एक अनुष्ठान, और आसमान से पैसों की बारिश होगी!. यही वह जादुई वादा था, जो ये लोग अपने शिकार को लुभाने के लिए करते थे. जांच टीम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘इन ठगों ने ऐसा माहौल बनाया था कि लोग उनकी बातों में आकर अपनी जमा-पूंजी सौंप देते थे.’
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