हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने मंदिरों को दान की गई धनराशि का दुरुपयोग रोकने के लिए बड़े आदेश जारी किए हैं. कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दान को हर कहीं इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. बल्कि मंदिर या धार्मिक कार्यों से जुड़े स्थलों पर ही उपयोग किया जा सकता है. न्यायाधीश राकेश कैंथला की खंडपीठ ने हिंदू धर्म के इतिहास को ध्यान में रखते हुए ये निर्देश जारी किए हैं.
दान राशि का उचित उपयोग
कोर्ट ने मंदिरों में दिए गई दान राशि का उपयोग वेदों एवं योग की शिक्षा के लिए, अध्ययन और प्रचार के बुनियादी ढांचे को तैयार करने और ऐसी संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने, अन्य मंदिरों के रखरखाव, वित्तीय सहायता और पुजारी वेतन पर खर्च करने के आदेश दिए हैं. इसके अलावा कोर्ट ने किसी भी प्रकार के भेदभाव और अस्पृश्यता को मिटाने जैसे अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए भी इस राशि के उपयोग के निर्देश दिए हैं.
वेदों, उपनिषदों और अन्य व्याख्यात्मक ग्रंथों की शिक्षा प्रदान करने के लिए संस्थाओं और वेद गुरुकुल स्थापित करने, हिंदू धर्म के सभी संप्रदायों और जातियों के पंडितों, पुजारियों को धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए प्रशिक्षित करने हेतु बुनियादी ढांचा और व्यवस्था बनाने पर इस पैसे को खर्च करने की बात कही गई है.
अनुचित उपयोग पर रोक
कोर्ट ने दान राशि का दुरुपयोग रोकने के लिए इस राशि को कुछ कार्यों के लिए उपयोग करने पर प्रतिबंधित भी किया है. कोर्ट ने दान राशि का उपयोग उन सडक़ों, पुलों और सार्वजनिक भवनों के निर्माण के लिए न करने के आदेश दिए हैं, जो सरकारों द्वारा बनाए जाने हैं या जो मंदिर से जुड़े नहीं हैं. किसी भी सरकारी कल्याणकारी योजना के लिए, निजी व्यवसायों या उद्योगों में निवेश के लिए, दुकानें, मॉल या होटल चलाने के लिए इस राशि का उपयोग वर्जित किया गया है. कोर्ट ने मंदिर कमिश्नर सहित मंदिर अधिकारी आदि के लिए वाहन खरीदने और वीआईपी के लिए इस रााशि से उपहार खरीदने पर भी रोक लगा दी है.
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