दोस्तों, आयुर्वेद को छोड़कर अन्य चिकित्सा पद्धतियों में बनने वाली दवाओं में मांसाहार का काफी उपयोग होता है। जो कैप्सूल आप एलोपैथी में लेते हैं, वे सभी मांसाहारी होते हैं। दरअसल, कैप्सूल का कवर प्लास्टिक का नहीं होता, जैसा कि दिखता है।
यदि यह प्लास्टिक होता, तो यह शरीर में घुलता नहीं। प्लास्टिक को घुलने में 400 साल लगते हैं, इसलिए यह कैप्सूल सीधे टॉयलेट के रास्ते बाहर निकल जाएगा। इन कैप्सूल के कवर को बनाने के लिए जो रसायन उपयोग होता है, उसे जिलेटिन कहा जाता है।
जिलेटिन गाय के बछड़े या गाय के कत्ल के बाद उसकी आंतों से बनाई जाती है, इसलिए ये सभी कैप्सूल मांसाहारी हैं।
आप चाहें तो मेरी बात पर विश्वास न करें, बस गूगल पर 'capsules made of' सर्च करें। आपको सैकड़ों लिंक मिलेंगे जो यह स्पष्ट करेंगे कि कैप्सूल जिलेटिन से बनते हैं।
एलोपैथी दवाओं पर निशान का महत्व
आपने देखा होगा कि 90% एलोपैथी दवाओं पर हरा या लाल निशान नहीं होता। इसका कारण यह है कि इनमें मांसाहार का उपयोग अधिक होता है। हाल ही में कोर्ट ने कहा था कि दवाओं पर हरा या लाल निशान अनिवार्य होना चाहिए, जिससे बड़ी एलोपैथी कंपनियों में हड़कंप मच गया।
गोलियों में भी मांसाहार का खतरा
एलोपैथी में गोलियां भी होती हैं। कुछ गोलियों को हाथ पर रगड़ने से पाउडर निकलता है, लेकिन कुछ गोलियों पर जिलेटिन का कोटिंग होता है। ये भी मांसाहारी हैं।
कुछ गोलियां ऐसी हैं जिन पर जिलेटिन का कोटिंग नहीं होता, लेकिन वे इतनी खतरनाक हैं कि कैंसर, शुगर जैसी बीमारियों का कारण बन सकती हैं। उदाहरण के लिए, पैरासिटामोल पर जिलेटिन का कोटिंग नहीं है, लेकिन इसका अधिक उपयोग ब्रेन हैमरेज का कारण बन सकता है।
आयुर्वेद की ओर लौटने का समय
तो सवाल उठता है कि हमें क्या खाना चाहिए? इसका उत्तर है कि हमें अपनी चिकित्सा स्वयं करनी चाहिए, अर्थात आयुर्वेद की ओर लौटना चाहिए।
हमारे देश में गौ हत्या केवल मांस के लिए नहीं होती, बल्कि इससे निकलने वाले खून, हड्डियों का चुरा, चर्बी, जिलेटिन आदि का भी उपयोग होता है। इनका प्रयोग कॉस्मेटिक, टूथपेस्ट, और अन्य उत्पादों में होता है। इसलिए, गौ रक्षा की बात करने से पहले हमें उन वस्तुओं का त्याग करना चाहिए जिनसे जीव हत्या होती है।
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