प्राइवेट अस्पतालों ने मुनाफा कमाने के चक्कर में सरकारी नियमों की अनदेखी कर दी है। यह न केवल सस्ते इलाज की सरकारी मुहिम को कमजोर कर रहा है, बल्कि मरीजों की जान को भी खतरे में डाल रहा है। इस संदर्भ में कुछ मेडिकल डिवाइस और फार्मा कंपनियां भी शामिल हैं। हालात की गंभीरता को देखते हुए, सभी पक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।
कैसे हो रहा है पूरा खेल
1- 5 रुपए की दवा हो जाती है 106 रुपए की
एक रिपोर्ट के अनुसार, प्राइवेट अस्पताल मरीजों से 5 रुपए की दवा को 106 रुपए में बेच रहे हैं। इसी तरह, 13.64 रुपए की सीरिंज को 189.95 रुपए में बेचा जा रहा है। रिपोर्ट में ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं, जहां दवाओं पर 250 से 1737 फीसदी तक का मार्जिन लिया जा रहा है।
2- नॉन शिड्यूल्ड दवाओं का इस्तेमाल ज्यादा
अस्पतालों द्वारा नॉन शिड्यूल्ड दवाओं को प्राथमिकता दी जा रही है, ताकि वे सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम कीमत से बच सकें।
3- नियमों का ऐसे निकाला तोड़
सरकारी नियमों का उल्लंघन करते हुए, अस्पताल उन दवाओं की कीमतें बढ़ा रहे हैं जिनकी रिटेल प्राइस पहले से तय है। कुछ फार्मा कंपनियां भी नए ड्रग्स बनाकर प्राइस कंट्रोल से बचने की कोशिश कर रही हैं।
4- मुकदमेबाजी का भी डर नहीं
ओवरचार्जिंग के मामलों में दवा कंपनियों पर पेनल्टी लगाई जाती है, लेकिन इसके बावजूद कई कंपनियां बिना किसी डर के ओवरप्राइसिंग कर रही हैं।
बिगड़ सकता है इंडस्ट्री का इकोनॉमिक्स
कुछ मेडिकल डिवाइस कंपनियों का कहना है कि निजी अस्पतालों की इस लूट से पूरी इंडस्ट्री की छवि खराब हो रही है।
सरकार की ओर से भी है लूप-होल
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी लूप-होल के बिना यह सब संभव नहीं है। सरकार को दवाओं की कीमतों की निगरानी के लिए एक मजबूत प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।
फार्मा इंडस्ट्री ने अस्पतालों पर मढ़ा दोष
फार्मा कंपनियों का कहना है कि वे दवाएं कम कीमत पर उपलब्ध कराती हैं, लेकिन अस्पतालों द्वारा कीमतें बढ़ाई जा रही हैं।
खराब हो रही घरेलू फार्मा इंडस्ट्री की इमेज
इस स्थिति के कारण भारतीय फार्मा इंडस्ट्री की छवि न केवल देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभावित हो रही है।
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