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राजस्थान का अनोखा माता सुखदेवी मंदिर: आस्था और मान्यता का केंद्र

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माता सुखदेवी के मंदिर की विशेषताएँ

नवरात्रि के दौरान माता रानी के मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। भारत में माता रानी के कई अद्भुत मंदिर हैं, जिनमें से एक है राजस्थान का माता सुखदेवी मंदिर। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां दर्शन करने से निसंतान दंपत्तियों की गोद भर जाती है और लकवा से पीड़ित लोग भी चलने लगते हैं।


मंदिर की अनोखी परंपराएँ माता सुखदेवी का मंदिर
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यह मंदिर उदयपुर के निकट बेदला गांव में स्थित है और इसका निर्माण आठवीं सदी में हुआ था। यहां आने वाले भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे पीछे मुड़कर न देखें, क्योंकि ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियाँ पीछे छूट जाती हैं। यदि आप बुरी शक्तियों से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो इस मंदिर में आकर पूजा कर सकते हैं।


मंदिर में बलि की परंपरा जिंदा मुर्गे और बकरों की परंपरा
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मंदिर के आंगन में एक पेड़ है, जहां भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर जिंदा मुर्गे और बकरों को छोड़ते हैं। पहले यहां पशुओं की बलि दी जाती थी, लेकिन अब यह परंपरा बंद कर दी गई है। भक्त इन जानवरों को खरीदकर उन्हें खिलाते भी हैं।


नवमी पर विशेष भीड़ नवमी का दिन
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सुखदेवी माता के मंदिर में नवमी के दिन भक्तों की भारी भीड़ होती है। आमतौर पर अष्टमी को अधिक भीड़ होती है, लेकिन यहां नवमी पर लोग ज्यादा आते हैं। इस परंपरा का कारण यहां के बुजुर्ग भी नहीं बता पाते।


सभी धर्मों के भक्त सुखदेवी माता के भक्त
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बेदला गांव के सभी लोग सुखदेवी माता के भक्त हैं, चाहे उनकी जाति या धर्म कुछ भी हो। यहां के लोग अपने नए वाहनों पर सबसे पहले माता का नाम लिखवाते हैं और उन्हें मंदिर लाकर पूजा करते हैं।


मंदिर का महत्व लकवा रोगियों और निसंतानों के लिए आशा

सुखदेवी माता का मंदिर लकवा रोगियों और निसंतानों के लिए एक वरदान है। जो दंपत्ति संतान की इच्छा लेकर आते हैं, वे मंदिर के पेड़ पर झूला टांगते हैं। मान्यता है कि इससे उनकी गोद भर जाती है। लकवा पीड़ित लोग माता की प्रतिमा के सामने बने दरवाजे से सात बार निकलते हैं, जिससे उन्हें लाभ होता है।


मंदिर तक पहुँचने का रास्ता पहाड़ी को काटकर बनाया गया रास्ता

बेदला में स्थित सुखदेवी माता के मंदिर तक पहुँचने के लिए एक पहाड़ी को काटकर रास्ता बनाया गया है। कहा जाता है कि इस पहाड़ी के मध्य से गुजरने से जीवन में सुख मिलता है। इतिहास के अनुसार, इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा फतह सिंह ने करवाया था।


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