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ट्रंप का पीएम मोदी को 'ग्रेट प्राइम मिनिस्टर' बताने के बाद क्या अमेरिका से सुधरेंगे रिश्ते?

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THOMAS SHEA/AFP via Getty Images अमेरिका के ह्यूस्टन में 22 सितंबर, 2019 को हुए 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में हाथों में हाथ लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बहुत से विश्लेषक 'अनप्रीडिक्टेबल' कहते हैं, यानी एक ऐसे राष्ट्रपति जो कभी भी अप्रत्याशित रूप से कोई क़दम उठा सकते हैं.

अब कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरे कार्यकाल में अपनी उस छवि को बरक़रार रखा है. अपने इसी बर्ताव के तहत वह नेगोशिएट यानी मोल-भाव करने की कोशिश करते हैं.

ट्रंप भारत पर कुल 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा चुके हैं. यह मुद्दा भारत की कूटनीति के साथ ही राजनीति को भी प्रभावित कर रहा है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस पर लगातार टिप्पणियां हो रही हैं.

शनिवार को ट्रंप और पीएम मोदी ने दोनों देशों के रिश्तों की तारीफ़ की. ट्रंप ने पीएम मोदी को अपना 'अच्छा दोस्त' बताया.

तो वहीं पीएम मोदी ने ट्रंप के बयान की सराहना की.

इस बीच जब चीन ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक आयोजित की, जहां पीएम मोदी की शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय बातचीत हुई, इससे भी यह संकेत देने की कोशिश की गई कि भारत किसी एक पक्ष पर निर्भर नहीं है. ऐसे में अब कई सवाल उठ रहे हैं.

क्या अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप पर भारत को लेकर कहीं से कोई दबाव तो नहीं है? भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों पर इसका कितना असर हो सकता है?

एससीओ की बैठक से निकली तस्वीरें अमेरिका को कितना असहज करेंगी और क्या पीएम मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की जिस घनिष्ठता की चर्चा होती थी, वह अब नहीं रही?

द लेंस के आज के एपिसोड में इन सभी मुद्दों पर चर्चा की गई.

इस चर्चा में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा के साथ शामिल हुए अमेरिका में भारत के राजदूत रहे वरिष्ठ पूर्व राजनयिक नवतेज सरना और वॉशिंगटन से पत्रकार और लेखिका सीमा सिरोही.

ट्रंप की शैली और दूसरे कार्यकाल की नई राजनीति image Getty Images अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अनप्रीडिक्टेबल नेता माना जाता है

नवतेज सरना मानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में ही अनप्रीडिक्टेबल नेता थे और दूसरे कार्यकाल में यह अंदाज़ और बढ़ गया है.

सरना कहते हैं, "दूसरे दौर में ट्रंप एक बिल्कुल अलग तरह की प्रेसीडेंसी चला रहे हैं. यह बहुत व्यक्तिगत हो गया है और उनके सभी सलाहकार उनके प्रति पूरी तरह वफ़ादार बन गए हैं. कोई उनके सामने सलाह देने को तैयार नहीं है और कई लोग शायद रणनीति समझते भी नहीं."

सीमा सिरोही भी कुछ ऐसा ही इशारा करती हैं. वह बताती हैं कि इस प्रशासन में नीति-निर्धारण एकतरफ़ा ढंग से हो रहा है.

वह कहती हैं, "अमेरिका में इस एडमिनिस्ट्रेशन में जो भी पॉलिसी बनाई जा रही है, वह सिर्फ़ एक व्यक्ति बना रहे हैं और वह हैं राष्ट्रपति ट्रंप. इसमें और कोई नतीजा आप नहीं निकाल सकते, क्योंकि पॉलिसी नीचे से ऊपर नहीं बन रही, ऊपर से नीचे बन रही है."

image BBC भारत पर ट्रंप के ग़ुस्से के कारण image Getty Images भारत अमेरिका के साथ ट्रेड डील में कथित तौर पर कृषि और डेयरी सेक्टर को लेकर कोई समझौता करने को तैयार नहीं है

बिना किसी ठोस कारण के, राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल में भारत के साथ संबंधों को आक्रामक लहजे में निशाना बनाया है.

नवतेज सरना कहते हैं, "'ऑपरेशन सिंदूर' में हमने उन्हें मीडिएटर नहीं माना, हमने उनकी नोबेल प्राइज़ के लिए सिफ़ारिश नहीं की."

एक बड़ा कारण यह भी बताया जाता है कि भारत ने ट्रेड डील में अपनी रेड लाइन्स, ख़ासकर कृषि और डेयरी सेक्टर, को छोड़ने से इनकार कर दिया.

सरना याद दिलाते हैं, "रूस से तेल चीन ज़्यादा ख़रीदता है, यूरोप गैस ख़रीदता है."

सरना का कहना है, "राष्ट्रपति ट्रंप को अभी भारत के साथ कुछ बहुत ग़ुस्सा है और वह ग़ुस्सा निकाल रहे हैं."

सीमा सिरोही भी मानती हैं कि हालात अचानक बदले हैं और इसमें कई घटनाओं का योगदान है. वह कहती हैं, "पिछले 3-4 महीनों में इंडिया-अमेरिका की रिलेशनशिप एकदम से, जैसे सोचिए पलट गई, फ्रेंडशिप से हॉस्टिलिटी जैसी हो गई."

वह याद दिलाती हैं कि चुनाव अभियान के दौरान भारत ने कैंडिडेट ट्रंप से मुलाक़ात की कोशिश की थी लेकिन यह संभव नहीं हो पाया.

इसके बाद 'ऑपरेशन सिंदूर' में भारत ने साफ़ कहा कि पाकिस्तान के साथ सीज़फ़ायर में ट्रंप का कोई रोल नहीं था.

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image BBC रिश्ते किस तरफ़ जा रहे हैं?

भारत और अमेरिका के बीच बीते दो दशकों में काफ़ी नज़दीकी और विश्वास का रिश्ता कायम हुआ था.

मगर नवतेज सरना कहते हैं, "इससे जो भरोसा 20-25 साल की मेहनत से दोनों तरफ़ बना था, जो प्रेडिक्टिबिलिटी और स्ट्रैटेजिक लॉजिक इस रिश्ते का आधार था, वह अब काफ़ी हद तक टूट चुका है."

उनके मुताबिक़ राष्ट्रपति ट्रंप ने बिना किसी ठोस कारण के भारतीय अर्थव्यवस्था और आपसी रिश्तों पर हमला बोला है.

सरना कहते हैं, "राष्ट्रपति ट्रंप ने इस रिश्ते को अटैक किया है, भारत की अर्थव्यवस्था को अटैक किया है, हमारे रिश्तों पर हमला बोला है."

वॉशिंगटन के रणनीतिक हलकों में भी चिंता जताई जा रही है.

सीमा सिरोही कहती हैं, "जिन लोगों ने इस रिश्ते पर पिछले 25 सालों में काम किया है, वह कह रहे हैं कि यह सबसे बड़ी ग़लती राष्ट्रपति ट्रंप की है कि वह पूरे रिश्ते को बर्बाद कर रहे हैं."

image BBC अमेरिकी नीतियों पर भारतीय मूल के लोगों का असर? image SAUL LOEB/AFP via Getty Images 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में अमेरिका में बसे भारतीय मूल के समुदाय का अभिवादन स्वीकार करते भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

अक्सर कहा जाता है कि अमेरिका में बसे भारतीय मूल के समुदाय का राजनीतिक प्रभाव अब बहुत बढ़ गया है और यह लोग भारत-अमेरिका संबंध प्रगाढ़ करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन नवतेज सरना इस पर एक अलग नज़रिया रखते हैं.

वह कहते हैं, "हमारा नैरेटिव है कि हमारा भारतीय समुदाय राजनीतिक रूप से बहुत पावरफ़ुल हो गया, बहुत एक्टिव हो गया और यह हमने इतनी बार दोहराया है कि शायद हम ख़ुद इसको मानने लग गए हैं."

नवतेज का कहना है कि असलियत में अधिकांश भारतीय-अमेरिकी अपने-अपने पेशों और ज़िंदगी में व्यस्त हैं.

कुछ लोग कभी-कभार राजनेताओं को चंदा देते हैं, लेकिन एक संगठित राजनीतिक शक्ति के तौर पर प्रभाव सीमित है.

image BBC अमेरिका के अंदर से भी उठ रही हैं विरोध की आवाज़ें

अमेरिका के भीतर भी कई प्रभावशाली लोग और पूर्व अधिकारी चेतावनी दे रहे हैं कि भारत से रिश्ते बिगाड़ना ठीक नहीं.

जॉन बोल्टन, जेक सुलिवन और निकी हेली जैसे नाम चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं.

नवतेज सरना का कहना है, "ट्रंप के क़रीबी सलाहकारों में अब कोई ऐसा नहीं बचा जो भारत-हित में जाकर उनसे कह सके कि नीति में सुधार की ज़रूरत है. बोल्टन या हेली जैसे लोग अब दूर हैं और टीवी पर बयान देने के अलावा उनकी बात का प्रत्यक्ष असर ट्रंप तक नहीं पहुँचता. मेरे ख़याल से आजकल वहाँ इतनी हिम्मत किसी में नहीं है."

image BBC

सीमा सिरोही बताती हैं, "जिन लोगों ने इस रिश्ते पर पिछले 25 सालों में काम किया है, वह कह रहे हैं कि यह सबसे बड़ी ग़लती राष्ट्रपति ट्रंप की है कि वह पूरी रिलेशनशिप को बर्बाद कर रहे हैं. इसे इतनी मेहनत से बनाया गया था. इसका मुख्य कारण यही था कि चीन को बैलेंस करना है. लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप उसे छोड़ रहे हैं, त्याग रहे हैं."

वह कहती हैं, "आपने देखा होगा कि विदेश मंत्री मार्को रुबियो, जो अमेरिका के सबसे बड़े डिप्लोमैट हैं, वह कुछ-कुछ कहते रहते हैं जिससे लगे कि भारत का रिश्ता महत्वपूर्ण है. लेकिन उनकी कोई सुन नहीं रहा."

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एससीओ समिट: भारत के पास विकल्पों का संदेश image narendramodi/x पीएम मोदी चीन के तियानजिन में आयोजित एससीओ समिट में रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ

ऐसे माहौल में, हाल ही में हुए शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन की तस्वीरों ने ख़ासी चर्चा बटोरी. इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले.

नवतेज सरना कहते हैं, "एससीओ की बैठक तो निर्धारित थी और होनी ही थी, लेकिन मौजूदा माहौल में मोदी का वहाँ जाना और इन नेताओं संग मुस्कुराते हुए दिखना एक अलग तरह का कूटनीतिक संकेत बन गया."

उन्होंने यह भी कहा, "अगर ट्रंप का भारत पर हमला बिल्कुल अतार्किक है, बिना वजह है, तो हमारा पूरा हक़ है कि हम जिससे चाहें बात करें, जिसके साथ रिश्ते मज़बूत करना चाहें."

भारत की रणनीति क्या है? image Sergio Flores/Getty Images विश्लेषक मानते हैं कि अधिकतर भारतीय-अमेरिकी अपने पेशों में व्यस्त हैं. (फ़ाइल फ़ोटो)

भारत में भी अमेरिका के हालिया बर्ताव पर नाराज़गी देखी जा रही है. कई जगह यह मांग उठी कि अगर अमेरिका 50% टैरिफ़ लगाता है तो भारत भी जवाबी टैरिफ़ लगाए. मगर नवतेज सरना इसे भावनात्मक प्रतिक्रिया मानते हैं.

नवतेज सरना कहते हैं, "जो पलटकर कार्रवाई है, वह मेरे ख़याल से थोड़ी भावनात्मक प्रतिक्रिया होगी. हमारा लॉन्ग-टर्म इंटरेस्ट यही है कि इस रिश्ते में जो इतना काम हुआ है, जो फ़ायदे हुए हैं, यूनाइटेड स्टेट्स के साथ वह जितनी हद तक हो सके, बचाए जाएँ."

वह कहते हैं, "किसी एक देश पर, चाहे वह रूस हो या अमेरिका, इतनी निर्भरता नहीं होनी चाहिए. चीन के साथ भी बहुत निर्भरता है. इतनी निर्भरता नहीं होनी चाहिए कि जब समस्या आए तो हमारे लिए संकट बन जाए."

सीमा सिरोही कहती हैं, "अगर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप फोन पर बात करें तो कोई भरोसा नहीं कि वह बातचीत किस दिशा में जाएगी. वह एकदम ख़राब भी हो सकती है और अच्छी भी."

वह यह भी मानती हैं, "अगर आपको राष्ट्रपति ट्रंप की सोच में कुछ बदलाव लाना है तो नॉन-ट्रेडिशनल तरीक़ों से आपको काम करना पड़ेगा."

मोदी-ट्रंप के व्यक्तिगत रिश्ते पर क्या पड़ा असर? image Getty Images 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम की वजह से प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की घनिष्ठता की चर्चा हुई थी

एक समय था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घनिष्ठता की ख़ूब चर्चा होती थी.

'हाउडी मोदी' जैसे आयोजनों से लेकर बड़े मंचों पर एक-दूसरे की प्रशंसा तक, इस रिश्ते को ख़ास गति मिली थी. मगर मौजूदा हालात ऐसे नहीं हैं.

नवतेज सरना कहते हैं, "वह तो ज़ाहिर है कि पर्सनल रिलेशनशिप और रैपो चला ही गया है. हालाँकि अभी तक राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री के बारे में व्यक्तिगत तौर पर कुछ नहीं कहा है, यह अच्छी बात है. लेकिन वह जो पर्सनल रिलेशनशिप थी, इस माहौल में वापस लाना थोड़ा अनलाइकली लगता है."

सीमा सिरोही कहती हैं, "देशों के जो रिलेशन हैं, वह पूरी तरह पर्सनल नहीं होते. हाँ, एक हद तक व्यक्तिगत रिश्ते मायने रखते हैं और मानते हैं कि दोनों नेताओं के बीच काफ़ी नज़दीकी थी. लेकिन जब आपके देश का कोई इंट्रेस्ट सामने होता है, तो राष्ट्रपति ट्रंप वही पुश करते हैं."

वह कहती हैं, "'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत राष्ट्रपति ट्रंप चाहते थे कि भारत उनका रोल स्वीकार करे. लेकिन दिल्ली ने बहुत सख़्त रवैया अपनाया और कहा कि सीज़फ़ायर पाकिस्तान ने माँगा था, इसलिए हुआ. इसमें न तो अमेरिका से कोई ट्रेड जुड़ा था और न ही ट्रंप का कोई पर्सनल इंटरवेंशन."

image BBC आगे का रास्ता क्या?

नवतेज सरना कहते हैं, "यह लंबा और जटिल रिश्ता है. बहुत व्यापक रिश्ता है रक्षा, सुरक्षा, व्यापार, जनसंपर्क, शिक्षा, स्वास्थ्य और अंतरिक्ष सब शामिल हैं. देखना यह होगा कि कौन-से एरिया बिना दिक़्क़त चलते रहेंगे, जो प्रॉडक्टिव एरिया हैं. लेकिन जहाँ नई बड़ी प्रगति होनी थी, शायद अब वह न हो."

वह यह भी कहते हैं, "अगर ट्रेड डील होती है तो सम्मानजनक शर्तों के साथ हो, हमारी रेड लाइन्स क्रॉस किए बिना. लेकिन अब ऐसा माहौल बन गया है कि भारत अपने बुनियादी हितों से समझौता नहीं कर सकता और यह धारणा भी नहीं बनने दे सकता कि भारत ट्रंप से डर गया है."

सीमा सिरोही कहती हैं, "अगर आपको राष्ट्रपति ट्रंप की सोच में कुछ बदलाव लाना है तो नॉन-ट्रेडिशनल तरीक़ों से आपको काम करना पड़ेगा."

वह कहती हैं, "कोशिशें जारी हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस असर दिखा नहीं है."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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