भारत और पाकिस्तान ने शनिवार को एक दूसरे के सैन्य हवाई अड्डों पर हमले और नुक़सान पहुंचाने के दावे किए.
दोनों देशों के बीच तनाव शीर्ष पर था. इसी बीच अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस सक्रिय हुए.
उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर से बातचीत की.
शनिवार दोपहर भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ बैठक की.
भारत की तरफ़ से पाकिस्तान के साथ जारी संघर्ष को ख़त्म करने का ये पहला संकेत था.
दोपहर क़रीब साढ़े तीन बजे पाकिस्तान के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ़ मिलिट्री ऑपरेशंस) ने भारत के डीजीएमओ से फ़ोन पर बात की.
इस बातचीत में दोनों देश ज़मीन, वायु और जल क्षेत्र से एक-दूसरे के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमत हुए.
हालांकि, भारत और पाकिस्तान के बीच 'संघर्ष विराम' की पहली जानकारी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दी.
डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को 5:30 बजे अपने पर किए एक पोस्ट में भारत और पाकिस्तान के बीच 'संघर्ष विराम' की घोषणा करते हुए दावा किया कि 'रात भर चली बातचीत' में अमेरिका ने मध्यस्थता की.
ट्रंप ने दोनों देशों को मुबारकबाद देते हुए लिखा, "यह अमेरिका की मध्यस्थता में 'रात भर चली बातचीत' के बाद हुआ."
भारत और पाकिस्तान के बीच 'संघर्ष विराम' को लेकर' यह पहली सार्वजनिक घोषणा थी जो भारत और पाकिस्तान के आधिकारिक बयानों से पहले की गई थी.
इसके तुरंत बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री पर 'संघर्ष विराम' की पुष्टि की. उन्होंने कहा कि कूटनीतिक प्रयासों में अमेरिका, सऊदी अरब और ब्रिटेन सहित तीस से अधिक देश शामिल थे.

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने शनिवार शाम 5:45 बजे मीडिया ब्रीफ़िंग की और दोनों देशों के बीच लड़ाई रोकने को लेकर बनी सहमति के बारे में जानकारी दी.
विक्रम मिसरी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पाकिस्तान के डीजीएमओ के भारतीय डीजीएमओ को फ़ोन कॉल के बाद दोनों देशों में द्विपक्षीय सहमति बनी है. उन्होंने अमेरिका या किसी और देश का नाम नहीं लिया.
इसके बाद भारत के सूचना मंत्रालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पाकिस्तान के साथ आगे बातचीत को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार शाम छह बजे बयान जारी कर 'संघर्ष विराम' की पुष्टि करते हुए 'आतंकवाद' पर भारत के सख़्त रुख़ को दोहराया और भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय सहमति बनने की बात की.
विश्लेषक मानते हैं कि अमेरिका को सबसे बड़ी चिंता ये रही होगी कि अगर ये संघर्ष और आगे बढ़ा तो पाकिस्तान कुछ ऐसे क़दम उठा सकता है जिससे स्थिति और गंभीर हो सकती है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं, "अमेरिका इस बात को लेकर चिंतित था कि अगर ये संघर्ष और आगे बढ़ा और पाकिस्तान की सेना के सामने स्थिति गंभीर हुई तो पाकिस्तान कोई भी क़दम उठा सकता है. ऐसा लगता है कि अमेरिका ने पाकिस्तान की सेना पर डीजीएमओ के ज़रिए भारत से बात करने का दबाव डाला."
भारत के पूर्व राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार राजीव भाटिया भी ये मानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष और बढ़ने को लेकर अमेरिका चिंतित था और इसलिए जब हालात गंभीर हुए तो अमेरिका ने राजनयिक प्रयास तेज़ किए.
भाटिया कहते हैं, "हर स्तर पर भारत ये कह रहा था कि अगर पाकिस्तान बात को आगे नहीं बढ़ाएगा तो हम रुक जाएंगे. लेकिन जब स्थिति नहीं संभली तब ये स्पष्ट हो गया था कि अब हालात बहुत गंभीर हो गए हैं. सार्वजनिक रूप से अमेरिका भले ये कह रहा था कि यह भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ाई है, दोनों देशों को ख़ुद समाधान निकालना है लेकिन पर्दे के पीछे से वो इसे रोकने का प्रयास कर रहा था. अमेरिका के इन्हीं प्रयासों से ये संघर्ष रुका है."
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के खुलकर अमेरिका को धन्यवाद कहने और भारत के इसे लेकर कुछ ना कहने पर प्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं, "पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी ये चाह रहे थे कि कोई दख़ल दे और युद्ध विराम हो जाए. पाकिस्तान का अमेरिका को धन्यवाद देना स्पष्ट है. लेकिन भारत ने किसी से संघर्ष विराम की मांग नहीं की थी."
"भारत ये चाहता था कि पाकिस्तान डीएस्केलेट (तनाव कम) करे. भारत का रुख़ पहले से स्पष्ट था कि वह पाकिस्तान की सेना या आम लोगों के ख़िलाफ़ नहीं है बल्कि उसका अभियान आतंकवाद के ख़िलाफ़ है. भारत ने अमेरिका का शुक्रिया अदा इसलिए नहीं किया है क्योंकि इस स्थिति में अमेरिका ने भारत के लिए कुछ नहीं किया है."

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 11 मई को ट्रुथ सोशल पर जारी एक बयान में फिर से भारत और पाकिस्तान के 'मज़बूत नेतृत्व' को आक्रामकता रोकने के लिए मुबारकबाद दी.
इस बयान में ट्रंप ने कहा, "मैं इन दोनों महान राष्ट्रों के साथ मिलकर कश्मीर मुद्दे, जो एक हज़ार वर्षों से विवाद में है, उसका समाधान निकालने की आशा करता हूँ, ताकि क्षेत्र में शांति और समृद्धि कायम हो सके, और अमेरिका तथा विश्व के अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ सके!"
ट्रंप ने अपने इस दूसरे बयान में कश्मीर के मुद्दे के समाधान की बात की. कश्मीर ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर भारत किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता है.
'संघर्ष विराम' की घोषणा के बाद जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने खुलकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का शुक्रिया अदा किया है. वहीं भारत ने अपने किसी भी सार्वजनिक बयान में अमेरिका या राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता का ज़िक्र नहीं किया है.
ये माना जा रहा है कि भारत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को तरजीह देने से बच रहा है. वहीं विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप के सार्वजनिक रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष रोकने का श्रेय लेने से भारत को कोई दिक़्क़त नहीं होनी चाहिए.
भारत के पूर्व राजदूत और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार राजीव भाटिया कहते हैं, "सबसे अहम बात ये है कि अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता नहीं की है बल्कि फ़ेसिलिटेशन (सुविधा देना) किया है, यानी बात करवाई है."
ट्रंप ने सबसे पहले क्यों दिया बयान?ट्रंप ने अपने दूसरे बयान में कश्मीर के मुद्दे का भी ज़िक्र किया है. ये एक ऐसा विषय है जिसका अंतरराष्ट्रीयकरण भारत नहीं होने देना चाहता है.
ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या ट्रंप का स्वयं आगे बढ़कर ख़ुद भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष रुकने की जानकारी सबसे पहले देना और कश्मीर पर टिप्पणी करना क्या एक तरह से भारत के मामलों में दख़ल देना या ओवररीच है.
राजीव भाटिया मानते हैं कि ट्रंप अपनी तरफ़ से कुछ भी कह सकते हैं लेकिन अहम ये है कि भारत उनकी बात को कितनी तरजीह देता है.
राजीव भाटिया कहते हैं, "ट्रंप का संघर्ष विराम की घोषणा ख़ुद पहले करना एक तरह से ओवररीच है लेकिन अमेरिका का मीडिया काफ़ी सक्रिय रहता है और हो सकता है ट्रंप ने इसलिए ही पहले जानकारी साझा कर श्रेय लेने की कोशिश की हो."
भाटिया कहते हैं, "हालांकि, ट्रंप ने कहा है कि आगे सभी मुद्दों पर बात होगी, कश्मीर पर भी बात होगी लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसी किसी बातचीत के लिए कोई सहमति भारत और पाकिस्तान के बीच बनी होगी. ट्रंप एक बड़े और अहम राष्ट्र का नेतृत्व करते हैं, वो अपनी तरफ़ से कह सकते हैं. लेकिन भारत वही करेगा जो उसे करना होगा."
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं, "कश्मीर मुद्दे को लेकर अगर कोई तीसरा देश दख़ल देना चाहता है तो भारत मना करेगा. लेकिन ये संघर्ष कश्मीर को लेकर नहीं था बल्कि आतंकवाद को लेकर था."
"डोनाल्ड ट्रंप ने अगर पहले जानकारी दे भी दी तो इससे भारत का कोई अहित नहीं हुआ है. ट्रंप के दख़ल देने या उनकी ओवररीच को लेकर जो टिप्पणियां सोशल मीडिया पर की जा रही हैं वो राजनीतिक हैं. इस स्थिति में भारत और पाकिस्तान की ट्रंप को लेकर प्रतिक्रिया की तुलना नहीं की जा सकती है."
तो क्या भारत अमेरिकी प्रयासों को नज़रअंदाज़ या डाउनप्ले कर रहा है? विश्लेषक मानते हैं कि ऐसा नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार स्तुति बनर्जी कहती हैं, "मुझे नहीं लगता कि भारत अमेरिका के प्रयासों को डाउनप्ले कर रहा है. भारत बस ये स्पष्ट कर रहा है कि हम बातचीत के लिए मदद तो स्वीकार कर सकते हैं लेकिन बातचीत सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच ही होगी. और इसलिए ही भारत ने अमेरिका के बयानों पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है."

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर के मुद्दे का भी ज़िक्र किया है और इसके समाधान में मदद की पेशकश की है.
विश्लेषक मान रहे हैं कि भारत भले ही इस पहल का स्वागत करे लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि भारत कश्मीर के मुद्दे पर किसी बाहरी देश का दख़ल स्वीकार करेगा.
अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार स्तुति बनर्जी कहती हैं, "अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में वो पहले भी रूस-अमेरिका के बीच शांति लाने की बात कर चुके हैं, मध्य पूर्व में शांति लाने की बात कर चुके हैं. अब उन्होंने कश्मीर की बात की है. ये मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच का मुद्दा है. भारत किसी तीसरे देश के दख़ल को स्वीकार ना करने के रुख़ पर बकरार रहेगा."
हालांकि ये पहली बार नहीं है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष में दख़ल दिया हो.
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ बिल क्लिंटन के पास अमेरिका पहुंचे थे और भारत के साथ युद्ध विराम कराने की मांग की थी. तब बिल क्लिंटन ने दख़ल दिया था और अटल बिहारी वाजपेयी से कहा था कि युद्ध रुकना चाहिए. इसके बाद भारत और पाकिस्तान ने करगिल युद्ध में संघर्ष विराम किया था.
डोनाल्ड ट्रंप से पहले भी कई अमेरिकी राष्ट्रपति कश्मीर के मुद्दे में दख़ल देने का प्रयास कर चुके हैं. लेकिन भारत ने ऐसे प्रयासों को बहुत तवज्जो नहीं दी है.
प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं, "डोनाल्ड ट्रंप से पहले भी कई अमेरिकी राष्ट्रपति कश्मीर के मुद्दे में दख़ल देने की कोशिश कर चुके हैं. पाकिस्तान हमेशा इसके लिए लॉबी करता है कि अमेरिका कश्मीर के मुद्दे में दख़ल दे. लेकिन भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया है. भारत अभी कश्मीर के मामले में किसी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा."
विश्लेषक मानते हैं कि अमेरिका राष्ट्रपति के बयान को इस संकेत के रूप में देखा जा सकता है कि पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने का प्रयास कर रहा है.
महापात्रा कहते हैं, "पाकिस्तान हमेशा से कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहता है. ये ज़रूर कहा जा सकता है कि ट्रंप का बयान इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में कामयाब हो रहा है."
"पाकिस्तान ये जानता है कि भारत इस मामले में कभी तीसरे देश का दख़ल स्वीकार नहीं करेगा. ऐसे में पाकिस्तान दुनिया के सामने ये दिखाना भी चाह रहा है कि कश्मीर के मामले में वह बात करना चाहता है लेकिन भारत इस पर बात नहीं करना चाहता."
लेकिन क्या ट्रंप कश्मीर पर मध्यस्थता को लेकर गंभीर है?
प्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं, "ट्रंप का कश्मीर को लेकर बयान बहुत गंभीर नहीं है. डोनाल्ड ट्रंप की नीयत ग़लत नहीं है. वो भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता कराने की बात कर रहे हैं. ये इरादा सही है लेकिन इसमें बहुत गंभीरता नहीं है."
विश्लेषक ये भी मानते हैं कि अमेरिका के पाकिस्तान से रिश्ते अलग हैं और भारत से अलग. ऐसे में अमेरिका के सामने ये चुनौती भी है कि वो दोनों देशों के साथ अपने रिश्तों को साधकर रखे.
स्तुति कहती हैं, "भारत को पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्तों से कोई दिक़्क़त नहीं है. भारत के पाकिस्तान के साथ कुछ मुद्दे हैं और भारत चाहता है कि पाकिस्तान की तरफ़ से आतंकवाद ख़त्म हो. अमेरिका इसमें किस तरह मदद कर सकता है ये अमेरिका को देखना होगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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