बिहार में महागठबंधन के नेताओं ने 24 सितंबर को एक घोषणा करते हुए कहा कि एससी/एसटी एक्ट की तर्ज़ पर अति पिछड़ा अत्याचार निवारण अधिनियम पारित किया जाएगा.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित महागठबंधन के अन्य नेताओं ने 'अति पिछड़ा न्याय संकल्प' बैठक में हिस्सा लिया.
बुधवार को हुई इस बैठक में 'पटना उद्घोषणा' के नाम से अति पिछड़ा आबादी के लिए 10 वादे किए गए.
यह एक तरह से महागठबंधन के चुनावी घोषणा पत्र का पहला हिस्सा है जिसे सभी घटक दलों ने रिलीज़ किया.
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अति पिछड़ा प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में राहुल गांधी ने कहा, "हम लोगों ने अति पिछड़ा महिलाओं, छात्रों, संगठनों से पूछकर ये पटना उद्घोषणा तैयार की है. यह अतिपिछड़ा वर्ग की आवाज़ है, जिसे हम लागू करने जा रहे हैं. यह हमारी गारंटी है. बिहार में अति पिछड़ा, दलितों, पिछड़ा सभी को भागीदारी मिलनी चाहिए. नीतीश कुमार आपसे वोट ले रहे थे और आपका इस्तेमाल कर छोड़ दे रहे थे."
वहीं, तेजस्वी यादव ने अति पिछड़ों और दलितों को 'पॉलिसी मेकिंग' में हिस्सेदारी नहीं मिलने को लेकर सवाल किया.
बुधवार सुबह कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की एक विस्तारित बैठक भी पटना में आयोजित की गई थी.
ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बिहार में कांग्रेस पहली बार सीडब्ल्यूसी की बैठक करके क्या संदेश देना चाहती है? अति पिछड़ा आबादी के लिए 10 वादों के मायने क्या हैं? क्या यह बिहार में 36 फ़ीसदी अति पिछड़ा आबादी को साधने की कोशिश है?
बिहार की राजनीति में अति पिछड़े बहुत महत्वपूर्ण जाति समूह हैं. 112 जातियों का ये समूह बिहार में आबादी के लिहाज़ से सबसे बड़ा है.
अति पिछड़ा आबादी नीतीश कुमार का कोर वोटर है और बिहार की राजनीति के जानकार मानते हैं कि आरजेडी के 'एमवाई समीकरण में एम यानी यादवों की वजह से अति पिछड़ा वोट महागठबंधन से छिटकता है.
ख़ुद तेजस्वी यादव भी कई मौकों पर कहते रहे हैं, "सबको साथ लेकर चलना होगा और यादवों को बड़े भाई की तरह अतिपिछड़ों के लिए बड़ा दिल करना होगा."
महागठबंधन ने अति पिछड़ा आबादी से जो वादे किए हैं, उसमें अति पिछड़ा अत्याचार निवारण अधिनियम पारित करने के अलावा और भी कई बातें हैं:
- पंचायत और नगर निकाय में आरक्षण 20 फ़ीसदी से बढ़ाकर 30 फ़ीसदी करना.
- आबादी के अनुपात में आरक्षण बढ़ाने के लिए विधानमंडल से पारित कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालना.
- नियुक्तियों में 'नॉट फाउंड सुटेबल' (NFS) को अवैध घोषित करना.
- अल्प या अति समावेशन से संबंधित मामलों को कमिटी बनाकर निपटाना.
- अति पिछड़ा, एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग के सभी भूमिहीनों को शहर में 3 और गांव में 5 डेसिमल आवासीय भूमि देना.
- प्राइवेट स्कूल में आरक्षित सीटों का आधा हिस्सा अतिपिछड़ा, एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग के बच्चों को दिया जाएगा.
- 25 करोड़ रुपये तक के सरकारी ठेकों में अति पिछड़ा, एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण.
- निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण.
- आरक्षण की देखरेख के लिए उच्च अधिकार प्राप्त आरक्षण नियामक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा और जातियों की आरक्षण सूची में परिवर्तन केवल विधान मंडल की अनुमति से होगा.
साफ़ तौर पर महागठबंधन इन वादों के ज़रिए आरक्षण, शिक्षा और रोज़गार जैसे अहम मसलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है.
'हम खुश हैं, लेकिन सीट में हिस्सेदारी तय करेगा रुख़'महागठबंधन के इन वादों का अति पिछड़ों ने स्वागत किया है.
अतिपिछड़ा संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी बीबीसी से कहते हैं, "यह बहुत सराहनीय कदम है. हम लोग बहुत खुश हैं लेकिन ये पार्टियां अतिपिछड़ों को सीट में कितनी हिस्सेदारी देती हैं, ये महत्वपूर्ण है. इसके बाद ही अतिपिछड़ा अपना रुख़ तय करेगा."
"नीतीश सरकार अति पिछड़ों के लिए घोषणा करके भी अपने वादे पूरे नहीं कर रही थी, ऐसे में पांच डेसिमल ज़मीन, पंचायती राज में आरक्षण, ठेका में आरक्षण के वादे बहुत अहम और प्रगतिशील हैं."
वहीं इस घोषणा के बाद एनडीए खेमे ख़ासतौर पर जेडीयू में बेचैनी देखी जा रही है.
जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं, "कांग्रेस की जहां सरकारें हैं और जहां उन्होंने जातीय सर्वे कराया है, जैसे तेलंगाना और कर्नाटक, वहां कांग्रेस ने अतिपिछड़ा संवर्ग और आयोग क्यों नहीं बनाया? चुनाव के वक़्त कांग्रेस को अतिपिछड़ा याद आ रहा है?"
दरअसल आने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में इस बार एक अलग परिस्थिति बन रही है. यह परिस्थिति मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ख़राब सेहत से जुड़ी ख़बरों के कारण बनी है.
राजनीतिक विश्लेषक और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के पूर्व प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र बीबीसी से कहते हैं, "इस चुनाव में एक यूनीक परिस्थिति बन रही है. दो दशक से बिहार में सत्तासीन नीतीश अवसान पर हैं और उनको अतिपिछड़ों का एक बड़ा हिस्सा वोट करता रहा है."
"अब अतिपिछड़ा वोटर नीतीश के साथ है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो जेडीयू के साथ है. दूसरी तरफ़ आप देखेंगे तो हर पार्टी अपना वोट बेस बढ़ाने की कोशिश कर रही है. अति पिछड़ा उसमें एक ऐसा जाति समूह है जिस पर सबकी नज़र है. महागठबंधन ने ये पहल करके उसको अपने पाले में रखने की कोशिश की है."
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पुष्पेंद्र यह भी बताते हैं कि अतिपिछड़ा का नेचुरल अलायंस बीजेपी और आरजेडी नहीं है क्योंकि वह सवर्णों और यादवों के साथ वोट नहीं देना चाहते.
यही वजह है कि अति पिछड़ा संवाद में कांग्रेस को मुख्य चेहरे के तौर पर पेश किया गया.
बीते कुछ महीनों में बिहार में कांग्रेस दलित, आदिवासी, मुस्लिम और अतिपिछड़ों को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है. आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए आज़ादी के बाद राज्य में पहली बार कांग्रेस ने सीडब्ल्यूसी की बैठक 24 सितंबर को आयोजित की.
इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुरुआती संबोधन में कहा, "बिहार राज्य का शासन और प्रशासन लंबे समय से छुट्टी पर है. नीतीश कुमार को बीजेपी ने मानसिक रूप से रिटायर कर दिया है. बीजेपी अब उन्हें बोझ मानने लगी है."
सीडब्ल्यूसी में दो प्रस्ताव पारित हुए. पहला राजनीतिक प्रस्ताव जिसमें सामाजिक न्याय, बिहार में चल रहे एसआईआर, सामाजिक ध्रुवीकरण, जीएसटी, विदेश नीति की विफलता, पेपर लीक, आर्थिक असमानता की बात है. इस प्रस्ताव में लिखा है कि प्रधानमंत्री की 'हग-प्लोमेसी' उलटी पड़ गई है.
राजनीतिक प्रस्ताव में संगठन को मज़बूत करने के लिए ज़िला कांग्रेस कमेटी के स्तर पर व्यवस्थित पुनर्गठन (सिस्टेमैटिक रीस्ट्रक्चरिंग) पर जोर दिया है. वहीं दूसरे प्रस्ताव में बिहार के लोगों से अपील की गई है.
इस अपील में लिखा है, "बिहार में एसआईआर योजनाबद्ध तरीके से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और हाशिए की आबादी को मताधिकार से वंचित करने की कोशिश है."
इस अपील में भागलपुर के पीरपैंती में अदानी को एक रुपये प्रति वर्ष की दर से मिली ज़मीन, परीक्षाओं में पारदर्शिता की कमी, आंदोलन करने वाले छात्र-छात्राओं पर लाठीचार्ज, भूमि सर्वेक्षण में अराजकता, बंद चीनी मिल, कानून व्यवस्था, ठप औद्योगिक विकास का सवाल भी उठाया गया है.
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बुधवार सुबह साढ़े दस बजे शुरू हुई इस बैठक के लिए पार्टी की तैयारी आधी-अधूरी थी.
सुबह राहुल गांधी के आने से पहले तक दरियाँ बिछती रहीं. कांग्रेस नेता भूपेश बघेल, यशोमति चंद्रकांत ठाकुर और सचिन पायलट ने जो प्रेस ब्रीफिंग सीडब्ल्यूसी की साढ़े चार घंटे चली बैठक के दौरान की, उसमें सभी ने लगभग एक जैसी बातें दोहराईं. ऐसा साफ़ लग रहा था कि ये जल्दबाज़ी और आधी-अधूरी तैयारी में बुलाई गई सीडब्ल्यूसी की विस्तारित बैठक है.
ऐसे में ये बैठक क्या बिना किसी तैयारी के पटना में विधानसभा चुनावों को देखते हुए की गई?
इस सवाल पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश कहते हैं, "हमारी ज्यादातर बैठकें दिल्ली में होती थी. लेकिन खड़गे जी के आने के बाद ये तय हुआ कि विस्तारित बैठक दिल्ली से बाहर हो. बीते आठ महीने में हमने कई जगह विस्तारित सीडब्ल्यूसी की बैठक की है. पटना भी उनमें से एक है. बाकी सितंबर 2023 में हमने तेलंगाना में विस्तारित बैठक की थी, जिसके दो महीने बाद हमने वहां सरकार बनाई. अब पटना में ये बैठक कर रहे हैं, यहां भी दो महीने बाद महागठबंधन की सरकार बनेगी."
लेकिन महागठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा और सीट शेयरिंग के सवाल को जयराम रमेश टाल गए. उन्होंने कहा, "बिहार कांग्रेस इस मसले को देख रही है और अपने सहयोगियों से बात कर रही है."
ऐसे में सीडब्ल्यूसी का क्या फ़ायदा कांग्रेस को होगा?
इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेंद्र कहते हैं, "बैठक में क्या हुआ ये महत्वपूर्ण नहीं है. पार्टी कार्यकर्ताओं को संदेश देना चाहती है कि बिहार हमारे लिए महत्वपूर्ण है और वो ऐसा करने में सफल रही. किसी भी पार्टी का रीवाइवल एक लंबी प्रक्रिया है. कांग्रेस ने बिहार में इसे देर से शुरू किया लेकिन पार्टी सही दिशा में कदम बढ़ाती हुई दिख रही है. महागठबंधन के भीतर भी आरजेडी ये चाहती है कि कांग्रेस का परफॉर्मेंस सुधरे."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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