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एस जयशंकर के संबोधन को शहबाज़ शरीफ़ के भाषण की तुलना में कैसे देख रहे एक्सपर्ट्स?

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भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र संकट में है और इसमें सुधार अब अनिवार्य हो गए हैं.

जयशंकर ने कहा कि यूएन सुरक्षा परिषद का विस्तार किया जाए और ग्लोबल साउथ की आवाज़ को मज़बूत बनाया जाए.

उन्होंने आतंकवाद पर सख़्त रुख़ अपनाते हुए पड़ोसी देश की तरफ इशारा किया और उसे वैश्विक आतंकवाद का केंद्र बताया.

विदेश मंत्री ने यूक्रेन और ग़ज़ा संघर्षका उल्लेख करते हुए सभी पक्षों से युद्धविराम और शांति की अपील की.

जयशंकर ने यह भी बताया कि भारत नेअब तक 78 देशों में 600 से ज़्यादा प्रोजेक्ट पूरे किए हैं और ज़रूरत के समय पड़ोसियों को भोजन, ईंधन और आर्थिक मदद दी है.

अपने संबोधन में विदेश मंत्री जयशंकर ने तीन मूलमंत्र - आत्मनिर्भरता, आत्मरक्षा और आत्मविश्वास को भारत की नीति का आधार बताया.

उन्होंने कहा कि भारत ग्लोबल साउथ की मज़बूत आवाज़ बना रहेगा. वहीं संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की ज़रूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि यूएन का अगला दशक "नेतृत्व और उम्मीद का दशक" होना चाहिए.

न्यूयॉर्क में यूएन महासभा के 80वें सत्र में 23 से 29 सितंबर तक जनरल डिबेट चल रही है. इस बार भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें हिस्सा नहीं लिया.

पिछले साल 79वें सत्र में पीएम मोदी ने वैश्विक शांति और विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया था.

image BBC हमारा पड़ोसी देश आतंकवाद का केंद्र है-एस जयशंकर

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में बिना नाम लिए पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया.

जयशंकर ने महासभा के मंच से कहा, "अपने अधिकार जताते हुए हमें ख़तरों का सामना भी दृढ़ता से करना होगा. आतंकवाद से लड़ना हमारी ख़ास प्राथमिकता है क्योंकि यह कट्टरवाद, हिंसा, असहिष्णुता और डर का मेल है."

विदेश मंत्री ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा, "भारत ने आज़ादी के समय से ही इस चुनौती का सामना किया है, क्योंकि हमारा एक पड़ोसी लंबे समय से वैश्विक आतंकवाद का केंद्र है."

उन्होंने अप्रैल 2025 में पहलगाम में पर्यटकों की हत्या की घटना का ज़िक्र करते हुए कहा, "भारत ने अपने लोगों की रक्षा का अधिकार इस्तेमाल किया और इस घटना को अंजाम देने वालों और अपराधियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया."

जयशंकर ने कहा कि आतंकवाद किसी एक देश का नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए साझा ख़तरा है.

उन्होंने कहा, ''जब देश खुलेआम आतंकवाद को स्टेट पॉलिसी घोषित करते हैं, जब आतंक के अड्डे औद्योगिक स्तर पर चलते हैं, जब आतंकियों की सार्वजनिक रूप से सराहना होती है, तो ऐसे कृत्यों की बिना शर्त निंदा की जानी चाहिए."

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एक्सपर्ट क्या कहते हैं? image BBC

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान कहते हैं कि ये समझ में नहीं आता कि पाकिस्तान का नाम लेने से भारत शर्माता क्यों है?

बीबीसी संवाददाता आनंद मणि त्रिपाठी से बातचीत में मुक्तदर ख़ान ने कहा, "पाकिस्तान ने भारत का नाम लेकर, कश्मीर का नाम लेकर, भारतीय मुसलमानों का ज़िक्र करते हुए कई आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि उन्होंने भारत के सात विमान गिराए थे. लेकिन भारत ने पाकिस्तान का नाम भी नहीं लिया. मेरी नज़र में जयशंकर की तकरीर बहुत कमज़ोर थी."

मुक्तदर ख़ान कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की गै़र मौजूदगी के कारण भारत का पक्ष पहले ही कमज़ोर दिखाई दिया, कहीं कोई चर्चा नहीं दिखी.

वहीं दूसरी तरफ़ न्यूयॉर्क से वॉशिंगटन तक पाकिस्तान इस अवसर को उत्सव के तरह पेश करता नज़र आया.

दिल्ली स्थित जेएनयू के रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह दूसरा नज़रिया रखते हैं.

बीबीसी संवाददाता अभय कुमार सिंह से बातचीत में वे कहते हैं, "जयशंकर ने बहुत साफ़ तरीके से भारत की वैश्विक चिंताओं को हाइलाइट किया है. यह सबसे पहली चीज़ है जो शहबाज़ शरीफ़ नहीं कर पाए."

अमिताभ सिंह ने कहा, "जयशंकर ने कहा कि आतंकवाद को एक कॉमन एजेंडा की तरह लेना चाहिए क्योंकि आतंकवाद उन देशों में भी वापस आ सकता है जो यूएन या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस एजेंडा का समर्थन नहीं कर रहे. वहीं शहबाज़ शरीफ़ अपनी ही बात करते रह गए."

प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह कहते हैं, "जयशंकर ने यह भी कहा भारत संयुक्त राष्ट्र के मंच का एक अहम हिस्सा बने. यानी वो संकेत दे रहे थे कि भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाए. शहबाज़ शरीफ़ ने इसका कोई ज़िक्र ही नहीं किया. उनके और जयशंकर में फर्क़ साफ दिखा. शरीफ़ ने अपनी आर्मी और मिलिट्री फ़ोर्सेस को एक्नॉलेज किया, जबकि जयशंकर ने सम्मानित तरीके़ से पाकिस्तान और उसके बैकर्स को इंटरनेशनल टेररिज़्म के दायरे में लपेट लिया."

image David Dee Delgado/Bloomberg via Getty Images संयुक्त राष्ट्र महासभा में जयशंकर ने कहा भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता पर कायम रहेगा.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने भाषण में कहा कि 2030 तक तय किए गए सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति बेहद धीमी है और यह चिंता का विषय है.

जयशंकर ने कहा, "जलवायु परिवर्तन पर सिर्फ़ पुराने वादे दोहराए जा रहे हैं लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही."

उन्होंने कहा कि महामारी के समय टीकों और यात्रा में भेदभाव साफ़ दिखा. 2022 के बाद ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा सबसे पहले प्रभावित हुई.

उन्होंने कहा कि अमीर देशों ने पहले ही संसाधन अपने लिए सुरक्षित कर लिए, जबकि गरीब देशों को संघर्ष करना पड़ा.

विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में बिना किसी देश का नाम लिए कहा, "जब बात व्यापार की आई तो नॉन मार्केट तरीकों से नियमों और व्यवस्थाओं का फ़ायदा उठाया गया. इसकी वजह से दुनिया कुछ देशों पर निर्भर हो गई. ऊपर से अब टैरिफ़ में उतार-चढ़ाव और बाज़ार तक पहुंच को लेकर अनिश्चितता है. नतीजतन, डि-रिस्किंग (यानी जोख़िम कम करने की रणनीति) ज़रूरी हो गई है."

उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में वैश्विक सहयोग बढ़ना चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि क्या हम सचमुच उस दिशा में बढ़ रहे हैं ?

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प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान कहते हैं कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की बात तो की, लेकिन समझा नहीं पाया कि उसे यह क्यों चाहिए?

उनका कहना है, "भारत ने युद्ध विराम और शांति की बात तो की, लेकिन न तो फ़लस्तीन का नाम लिया और न ही वहां के नागरिकों की स्थिति का ज़िक्र किया. उन्होंने ग़ज़ा का नाम भी नहीं लिया. इसराइल और रूस की निंदा भी नहीं की. विदेश मंत्री जयशंकर का यह एक बहुत कमज़ोर भाषण था."

वह कहते हैं, "भारत ने भाषण दिया कि यूएन मज़बूत होना चाहिए और सुरक्षा और विवाद के मसलों में उसे दखल देना चाहिए. लेकिन भारत और पाकिस्तान की बात जब आती है तो वो कहता है कि मामला द्विपक्षीय है. फिर यूएन के प्रति आपका सम्मान कहां है?"

सबसे बड़ी बात यह है कि इस कार्यक्रम में न तो रूस के राष्ट्रपति आए, न चीन के राष्ट्रपति और न ही भारत के प्रधानमंत्री आए. यह ग़ौर करने की बात है.

प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान कहते हैं, "घर में आत्मनिर्भरता की बात करते हैं और बाहर शिकायत कर रहे हैं कि दूसरे मुल्क तकनीक नहीं दे रहे हैं. जयशंकर ने बहुत सारी शिकायतें रखीं, जैसे आतंकवाद के हम विक्टिम हैं, कोई साथ नहीं देता है, तकनीक के मामले में हम विक्टिम हैं, अंतरराष्ट्रीय सहयोग में हम विक्टिम हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांगने से कुछ नहीं मिलता, लेना पड़ता है."

वहीं प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह कहते हैं कि जयशंकर का भाषण काफ़ी सराहनीय रहा. उन्होंने बहुत कम शब्दों में लेकिन बेहद स्पष्ट ढंग से अपनी बात रखी.

उनका कहना है, ''इसके उलट शहबाज़ शरीफ़ का अंदाज़ अनप्रोफ़ेशनल था, मानो वे घरेलू दर्शकों को संबोधित कर रहे हों. जयशंकर ने बिना किसी का नाम लिए भारत की ग्लोबल चिंताओं को यूएन जनरल असेंबली के मंच पर मज़बूती से रखा."

"यही इस मंच की असल भूमिका होती है. उन्होंने सुधारों की बात उठाई और यह भी रेखांकित किया कि शांति अभियानों में भारत की भूमिका कितनी अहम है और इसे और बढ़ाया जाना चाहिए.''

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शहबाज़ शरीफ़ ने क्या कहा था? image Getty Images भारत का दावा है कि पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना के 'ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान में स्थित नौ आतंकी शिविर नष्ट किए गए

शुक्रवार को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन के दौरान कहा था, "पाकिस्तान ने अपनी पूर्वी सीमा पर दुश्मन के उकसावे का जवाब दिया और पाकिस्तान ने भारत को पहलगाम हमले की निष्पक्ष जांच की पेशकश की थी."

उन्होंने आगे कहा था, "पाकिस्तान अपने संस्थापक क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना के दृष्टिकोण के अनुरूप हर मुद्दे को बातचीत और वार्ता के माध्यम से हल करना चाहता है."

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत पर पहलगाम की घटना का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और कहा, "पाकिस्तान बाहरी आक्रमण से पूरी तरह अपनी रक्षा करेगा."

उन्होंने कहा था, "हमने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है, अब हम शांति चाहते हैं और पाकिस्तान सभी लंबित मुद्दों पर भारत के साथ व्यापक और कारगर वार्ता करने के लिए तैयार है."

शहबाज़ शरीफ़ ने कहा था, "पाकिस्तान की विदेश नीति आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित है. हम विवादों का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं."

image FAROOQ NAEEM/AFP via Getty Images भारतीय सेना का दावा है कि 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान पाकिस्तान के मुरीदके में कई चरमपंथी कैंपों को निशाना बनाया गया था

शहबाज़ शरीफ़ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पुरस्कार देने की वकालत की थी.

उन्होंने इस बारे में यूएन में कहा, "अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव में दख़ल नहीं दिया होता तो युद्ध के परिणाम विनाशकारी हो सकते थे."

शहबाज़ शरीफ़ ने कहा, "पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध रोकने के लिए ट्रंप नोबेल शांति सम्मान के हकदार हैं."

वहीं भारत इस बात को नकारता रहा है कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष रोकने में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका थी.

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसी से जुड़े सवाल के जवाब में कहा था कि कई सालों से एक राष्ट्रीय सहमति रही है कि पाकिस्तान के साथ हमारे सभी मामले आपसी यानी द्विपक्षीय हैं.

शहबाज़ शरीफ़ बार-बार ट्रंप का नाम क्यों ले रहे थे?

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ अपने भाषण में कई बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम लेते दिखे.

संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि रह चुकीं मलीहा लोधी ने इस पर एक्स पर लिखा, "प्रधानमंत्री शरीफ़ के पूरे भाषण में कश्मीर पर सिर्फ़ दो वाक्य और ट्रंप की तारीफ़ में सात वाक्य थे, जो पिछली परंपरा से बिल्कुल अलग है."

शरीफ़ के बार-बार ट्रंप का ज़िक्र करने पर प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह कहते हैं कि ऐसा लगता है कि अपनी बात को मज़बूती देने के लिए उन्होंने ऐसा किया.

वो कहते हैं, "शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि ट्रंप ने युद्ध रुकवाया, जबकि भारत मानता ही नहीं कि कोई मध्यस्थता हुई थी. पाकिस्तान ने उन्हें 'ग्लोबल पीस मेसेंजर' और 'स्टेट्समैन' तक कहा. लेकिन भारत नाम क्यों लेगा? भारत ने तो उनसे युद्ध रोकने की कोई बात ही नहीं की."

अमिताभ सिंह कहते हैं, "असल में ट्रंप को मलाल भी यही है कि भारत उनका नाम नहीं ले रहा. पाकिस्तान इसे एक खेल की तरह पेश कर रहा है कि दिखाया जाए हम ट्रंप के ज़्यादा क़रीब हैं, जबकि उनकी बात तथ्य से अलग है."

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भारत का जवाब चर्चा में रहा था image UN संयुक्त राष्ट्र महासभा में दुनियाभर के देश वैश्विक मुद्दों पर अपनी बात रखते हैं

संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजनयिक पेटल गहलोत ने भारत के 'राइट टू रिप्लाई' के हक़ का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के भाषण पर जवाब दिया था.

पेटल ने कहा, "अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है."

पहलगाम हमले के बाद भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' शुरू किया था और इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष शुरू हो गया था.

शहबाज़ शरीफ़ इसी संघर्ष में पाकिस्तान की जीत के दावे कर रहे थे.

इस बयान के बाद शनिवार सुबह से ही सोशल मीडिया पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत की खूब चर्चा हो रही है.

शहबाज़ शरीफ़ के भाषण पर जवाब देते हुए पेटल गहलोत ने कहा था, "इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है."

उन्होंने कहा कि नाटक और झूठ का कोई भी स्तर सच्चाई को छिपा नहीं सकता.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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