प्रदेश की राजनीति और सामाजिक परिदृश्य को प्रभावित करने वाला एक अहम फैसला मंगलवार को राजस्थान विधानसभा में लिया गया। राज्य सरकार की ओर से ‘राजस्थान विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2025’ सदन में पेश किया गया, जिसे बहुमत से पारित कर दिया गया। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य प्रदेश में जबरन और गुप्त तरीके से हो रहे धर्मांतरण पर रोक लगाना है।
विधानसभा में कानून मंत्री ने बताया कि लंबे समय से प्रदेश में इस विषय पर चर्चा चल रही थी और विभिन्न संगठनों की ओर से लगातार मांग की जा रही थी कि जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए कड़ा कानून बने। विधेयक में ऐसे मामलों के लिए कठोर सजा और दंड का प्रावधान किया गया है। इसमें दोषी पाए जाने वालों को कड़ी कैद और आर्थिक दंड का सामना करना पड़ेगा।
विधानसभा में पारित होते ही इस विधेयक का असर राजनीतिक गलियारों से लेकर सामाजिक संगठनों तक देखा गया। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। वीएचपी के केंद्रीय संगठन महामंत्री मिलिंद परांडे ने अपने बयान में कहा कि “यह विधेयक आमजन की भावनाओं के अनुरूप है। लंबे समय से जो आवाजें उठ रही थीं, उन्हें यह कानून मजबूत करता है। अब इससे जबरन व गुपचुप तरीके से होने वाले धर्मांतरण पर रोक लग सकेगी।”
परांडे ने आगे कहा कि धर्मांतरण केवल धार्मिक आस्था का मामला नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने से भी जुड़ा है। उन्होंने विश्वास जताया कि यह विधेयक समाज में स्थिरता और आपसी सौहार्द बनाए रखने में मददगार साबित होगा।
वहीं, राजनीतिक हलकों में इस विधेयक को लेकर बहस छिड़ गई है। जहां सत्तारूढ़ दल इसे ऐतिहासिक कदम बता रहा है, वहीं विपक्ष ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम करार दिया। विपक्षी नेताओं का कहना है कि इस तरह के कानून पहले से ही मौजूद हैं और नए प्रावधानों का उद्देश्य केवल माहौल को ध्रुवीकरण करना है।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस कानून को सही ढंग से लागू किया गया तो यह जबरन धर्मांतरण जैसी घटनाओं पर अंकुश लगाने में मदद करेगा। लेकिन, यह भी जरूरी है कि इसके प्रावधानों का दुरुपयोग न हो और प्रशासन निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई करे।
प्रदेश के आमजन में भी इस विधेयक को लेकर चर्चा है। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक लोग इसे लेकर अपनी राय रख रहे हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह कदम लोगों की भावनाओं के अनुरूप है, वहीं कुछ ने आशंका जताई कि इसे लेकर विवाद भी पैदा हो सकते हैं।
फिलहाल, सरकार का दावा है कि यह विधेयक सामाजिक संतुलन बनाए रखने और प्रदेश के लोगों की आस्था की रक्षा करने के लिए लाया गया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस कानून का क्रियान्वयन किस तरह होता है और इसका वास्तविक असर समाज में कितना दिखता है।
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